👉Delhi polution par 🫢 हमारे देश की मीडिया का दोहरा 🫵 चरित्र Kya patrakarita itna niche gir chuka hai
Автор: Drb Deepak Officeal097
Загружено: 2025-12-25
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👉Delhi polution par 🫢 हमारे देश की मीडिया का दोहरा 🫵 चरित्र Kya patrakarita itna niche gir chuka hai
दिल्ली में प्रदूषण एक गंभीर समस्या है, लेकिन इस मुद्दे पर मीडिया की भूमिका अक्सर चर्चा का विषय रहती है। कई विश्लेषकों का मानना है कि मीडिया का इस पर 'दोगुना' (Double Standard) या चयनात्मक (Selective) रवैया रहता है।
इसे हम कुछ मुख्य बिंदुओं से समझ सकते हैं:
1. मौसमी सक्रियता (Seasonal Coverage)
मीडिया आमतौर पर प्रदूषण पर तभी शोर मचाता है जब सर्दियों में 'स्मॉग' (Smog) की चादर दिल्ली को ढक लेती है।
दोगुना रवैया: साल के बाकी महीनों में, जब प्रदूषण का स्तर 'खराब' श्रेणी में होता है, मीडिया शांत रहता है। प्रदूषण एक 365 दिन की समस्या है, लेकिन मीडिया इसे केवल एक 'विंटर इवेंट' की तरह कवर करता है।
2. पराली बनाम अन्य कारण
मीडिया का एक बड़ा हिस्सा प्रदूषण का सारा दोष पंजाब और हरियाणा के किसानों (पराली जलाने) पर मढ़ देता है।
दोगुना रवैया: जबकि विशेषज्ञों के अनुसार, स्थानीय कारण जैसे वाहनों का धुआं, धूल, निर्माण कार्य और औद्योगिक कचरा साल भर प्रदूषण बढ़ाते हैं। इन स्थानीय कारणों पर मीडिया की जवाबदेही और रिपोर्टिंग पराली के मुकाबले काफी कम होती है।
3. राजनीतिक झुकाव (Political Bias)
मीडिया रिपोर्टिंग अक्सर इस बात पर निर्भर करती है कि केंद्र और राज्य में किसकी सरकार है।
दोगुना रवैया: कई बार मीडिया समस्या का समाधान खोजने के बजाय इसे राजनीतिक अखाड़ा बना देता है। एक पक्ष की कमियों को बढ़ा-चढ़ाकर दिखाना और दूसरे पक्ष की विफलता को नजरअंदाज करना आम बात है।
4. समाधान बनाम सनसनी (Sensationalism)
मीडिया अक्सर डराने वाले आंकड़े और धुंधली तस्वीरें दिखाकर सनसनी फैलाता है।
दोगुना रवैया: जन जागरूकता और लंबे समय के समाधानों (जैसे पब्लिक ट्रांसपोर्ट को बढ़ावा देना या कचरा प्रबंधन) पर गहराई से चर्चा करने के बजाय, मीडिया केवल तात्कालिक 'इमरजेंसी' पर ध्यान केंद्रित करता है।
मीडिया के रवैये का एक तुलनात्मक सारांश
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