GOA में AAP की सियासी सच्चाई : उम्मीदें क्यों टूटीं ? | Rashtra TV
Автор: Rashtra TV
Загружено: 2025-12-25
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गोवा की राजनीति में आम आदमी पार्टी का सफर उम्मीदों, प्रयोगों और लगातार मिलती निराशाओं की कहानी बनता जा रहा है, और ज़िला पंचायत (ZP) चुनावों में करारी हार के ठीक दो दिन बाद पार्टी के गोवा प्रदेश अध्यक्ष अमित पालेकर को हटाया जाना इसी लंबी असफलता का ताज़ा और सबसे बड़ा संकेत है। 2022 के विधानसभा चुनावों से पहले अरविंद केजरीवाल ने गोवा को “आम आदमी पार्टी का अगला बड़ा किला” बनाने का ऐलान किया था, खुद कई दौरों में आए, दिल्ली मॉडल—मुफ़्त बिजली, पानी, शिक्षा और स्वास्थ्य—को गोवा के लिए उपयुक्त बताकर ज़ोरदार प्रचार भी किया, पंजाब की जीत को उदाहरण बनाया और यह दावा किया कि कांग्रेस व बीजेपी से ऊबे गोवा के मतदाता AAP को विकल्प के रूप में स्वीकार करेंगे, लेकिन ज़मीनी सच्चाई इससे उलट रही। 2022 विधानसभा चुनाव में AAP ने 39 सीटों पर उम्मीदवार उतारे, बड़े पैमाने पर प्रचार किया, संसाधन झोंके, फिर भी केवल 2 सीटें जीत सकी और कुल वोट शेयर लगभग 6–7% के आसपास सिमट गया, जो उस आक्रामक दावे के मुकाबले बहुत कमजोर था। इसके बाद 2024 के लोकसभा चुनाव में भी AAP कोई प्रभाव नहीं छोड़ पाई—दोनों सीटों पर पार्टी न तो जीत के करीब पहुंची, न ही ऐसा वोट शेयर बना सकी जिसे भविष्य की मजबूती का संकेत माना जाए। पार्टी नेतृत्व इसके बावजूद यह तर्क देता रहा कि संगठन निर्माण चल रहा है, पंचायत और ज़िला पंचायत स्तर पर पकड़ बनेगी, लेकिन हालिया ZP चुनावों में AAP का प्रदर्शन और भी निराशाजनक रहा—ज्यादातर जगहों पर उम्मीदवार दूसरे-तीसरे स्थान पर भी नहीं टिक पाए, वोट प्रतिशत बेहद कम रहा और पार्टी स्थानीय राजनीति में अप्रासंगिक सी दिखी। इसी पृष्ठभूमि में अमित पालेकर को हटाने का फैसला आया, जिसे पार्टी की राजनीतिक मामलों की समिति (PAC) ने “संगठनात्मक पुनर्गठन” बताया, लेकिन राजनीतिक विश्लेषण साफ़ इशारा करता है कि यह फैसला दरअसल लगातार मिल रही चुनावी नाकामियों की जिम्मेदारी तय करने और नेतृत्व में बदलाव का दबाव कम करने की कोशिश है। अमित पालेकर को गोवा में एक मुखर, आक्रामक और सोशल मीडिया-फ्रेंडली नेता के तौर पर पेश किया गया था, लेकिन उनके कार्यकाल में न तो बूथ-स्तर का संगठन मजबूत हो सका, न ही पारंपरिक गोवा मतदाता—खासतौर पर ग्रामीण, कैथोलिक और स्थानीय मुद्दों पर केंद्रित वर्ग—AAP के साथ जुड़ पाया। पार्टी पर “दिल्ली-केंद्रित” होने का आरोप भी लगातार लगता रहा, जहां नीतियां और चेहरे बाहर से थोपे गए, जबकि गोवा की राजनीति स्थानीय पहचान, चर्च-समुदाय संबंध, खनन, पर्यटन, भूमि और रोजगार जैसे विशिष्ट मुद्दों पर घूमती है। अरविंद केजरीवाल और आतिशी जैसे बड़े चेहरों का गोवा आकर प्रचार करना मीडिया कवरेज तो लाया, लेकिन यह स्थायी वोट में नहीं बदला; उलटे कई बार यह धारणा बनी कि AAP गोवा को प्रयोगशाला की तरह देख रही है, न कि एक जटिल सामाजिक-राजनीतिक राज्य के रूप में। ZP चुनावों की हार ने इस भ्रम को तोड़ दिया कि AAP जमीनी स्तर पर धीरे-धीरे पैर जमा रही है—हकीकत यह है कि पंचायत और ज़िला स्तर पर पार्टी के पास न तो मजबूत कैडर है, न प्रभावशाली स्थानीय नेता, और न ही ऐसा मुद्दा जो सीधे गोवा के रोजमर्रा के जीवन से जुड़कर वोट खींच सके। अमित पालेकर को हटाना इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि इससे पार्टी यह संदेश देना चाहती है कि वह हार की जिम्मेदारी लेने से नहीं बच रही, लेकिन सवाल यह है कि क्या सिर्फ अध्यक्ष बदलने से AAP की गोवा में मूल समस्या हल हो जाएगी? अब तक के आंकड़े बताते हैं कि विधानसभा (2022), लोकसभा (2024) और ज़िला पंचायत—तीनों स्तरों पर AAP लगातार असफल रही है, यानी समस्या किसी एक चुनाव या एक नेता तक सीमित नहीं, बल्कि रणनीति, संगठन और समझ की है। गोवा में कांग्रेस की पारंपरिक मौजूदगी, बीजेपी की मजबूत मशीनरी और स्थानीय निर्दलीय/क्षेत्रीय ताकतों के बीच AAP खुद को स्पष्ट रूप से परिभाषित नहीं कर पाई। नतीजा यह हुआ कि पार्टी का वोट शेयर बिखरा रहा, कार्यकर्ता हतोत्साहित हुए और नेतृत्व पर सवाल खड़े होते गए। PAC द्वारा अमित पालेकर को हटाने का फैसला इसलिए केवल एक व्यक्ति को हटाने का निर्णय नहीं, बल्कि AAP की गोवा रणनीति की विफलता की मौन स्वीकारोक्ति है—एक ऐसा कदम जो यह दिखाता है कि बड़े नेता भेजने, बड़े वादे करने और दिल्ली मॉडल दोहराने से गोवा जैसे राज्य में राजनीतिक जड़ें नहीं जमतीं। आगे AAP के सामने चुनौती यह है कि वह क्या सच में स्थानीय नेतृत्व, स्थानीय मुद्दों और लंबी संगठनात्मक मेहनत पर निवेश करेगी, या फिर गोवा भी उन राज्यों की सूची में शामिल हो जाएगा जहां पार्टी ने बड़े दावे किए, लेकिन स्थायी राजनीतिक आधार नहीं बना सकी।
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