Immerse youself in Krishnabhakti and pray forms of Lord Krishna with this beautiful stotram
Автор: Sanatana Bharat
Загружено: 2025-08-15
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Enjoy listening this famous verse written by Indian Philosopher Adi Guru Shankaracharya.
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Credits:
Singer: Amrita Chaturvedi Upadhyay
Lyrics: Adi Shankaracharya
Music: Rohit Kumar (Bobby)
Flute: Pt Ajay Shankar Prasanna
Sitar: Pt Sunil Kant
Mixmaster: Mix Box Studio
Video credits: Advitiya Sonkar (9326084928)
℗ 2025 Amrita Chaturvedi
अच्युतं केशवं रामनारायणं कृष्णदामोदरं वासुदेवं हरिम् ।
श्रीधरं माधवं गोपिकावल्लभं जानकीनायकं रामचंद्रं भजे ॥१॥
( अच्युत ,केशव ,राम नारायण ,कृष्ण ,दामोदर ,वासुदेव हरि श्रीधर , माधव , गोपिकावल्लभ तथा जानकी नायक रामचन्द्रजी को मैं भजता हूँ ।)
अच्युतं केशवं सत्यभामाधवं माधवं श्रीधरं राधिकाराधितम् ।
इन्दिरामन्दिरं चेतसा सुन्दरं देवकीनन्दनं नन्दजं सन्दधे ॥२॥
( अच्युत, केशव, सत्यभामापति, लक्ष्मीपति , श्रीधर, राधिकाजी द्वारा आराधित, लक्ष्मीनिवास, परम सुन्दर, देवकीनन्दन, नन्दकुमार का चित्त से ध्यान करता हूँ।)
विष्णवे जिष्णवे शाङ्खिने चक्रिणे रुक्मिणीरागिणे जानकीजानये ।
बल्लवीवल्लभायार्चितायात्मने कंसविध्वंसिने वंशिने ते नमः ॥३॥
( जो विभु हैं, विजयी हैं, शंख – चक्रधारी हैं, रुक्मिणीजी के परम प्रेमी हैं, जानकीजी जिनकी धर्मपत्नी हैं तथा जो ब्रजांगनाओं के प्राणाधार हैं उन परम पूज्य , आत्मस्वरूप कंसविनाशक मुरलीधर को मैं नमस्कार करता हूँ।)
कृष्ण गोविन्द हे राम नारायण श्रीपते वासुदेवाजित श्रीनिधे ।
अच्युतानन्त हे माधवाधोक्षज द्वारकानायक द्रौपदीरक्षक ॥४॥
( हे कृष्ण ! हे गोविन्द ! हे राम ! हे नारायण ! हे रमानाथ ! हे वासुदेव ! हे अजेय ! हे शोभाधाम ! हे अच्युत ! हे अनन्त ! हे माधव ! हे अधोक्षज ( इन्द्रियातीत ) ! हे द्वारिकानाथ ! हे द्रौपदीरक्षक ! ( मुझ पर कृपा कीजिये ) ।
राक्षसक्षोभितः सीतया शोभितो दण्डकारण्यभूपुण्यताकारणः ।
लक्ष्मणेनान्वितो वानरौः सेवितोऽगस्तसम्पूजितो राघव पातु माम् ॥५॥
( राक्षसों पर अति कुपित , श्री सीताजी से सुशोभित , दण्डकारण्य की भूमि की पवित्रता के कारण , श्री लक्ष्मण जी द्वारा अनुगत, वानरों से सेवित , श्री अगस्त्यजी से पूजित रघुवंशी श्री राम मेरी रक्षा करें।)
धेनुकारिष्टकानिष्टकृद्द्वेषिहा केशिहा कंसहृद्वंशिकावादकः ।
पूतनाकोपकःसूरजाखेलनो बालगोपालकः पातु मां सर्वदा ॥६॥
( धेनुक और अरिष्टासुर आदि का अनिष्ट करने वाले , शत्रुओं का ध्वंस करने वाले , केशी और कंस का वध करने वाले , वंशी को बजाने वाले , पूतना पर कोप करने वाले , यमुनातट विहारी बालगोपाल मेंरी सदा रक्षा करें ।)
विद्युदुद्योतवत्प्रस्फुरद्वाससं प्रावृडम्भोदवत्प्रोल्लसद्विग्रहम् ।
वन्यया मालया शोभितोरःस्थलं लोहिताङ्घ्रिद्वयं वारिजाक्षं भजे ॥७॥
( विद्युत्प्रकाश के सदृश जिनका पीताम्बर विभासित हो रहा है , वर्षाकालीन मेंघों के समान जिनका अति शोभायमान शरीर है , जिनका वक्ष:स्थल वनमाला से विभूषित है और चरणयुगल अरुणवर्ण हैं उन कमलनयन श्रीहरि को मैं भजता हूँ ।)
कुञ्चितैः कुन्तलैर्भ्राजमानाननं रत्नमौलिं लसत्कुण्डलं गण्डयोः ।
हारकेयूरकं कङ्कणप्रोज्ज्वलं किङ्किणीमञ्जुलं श्यामलं तं भजे ॥८॥
(जिनका मुख घुंघराली अलकों से सुशोभित है , मस्तक पर मणिमय मुकुट शोभा दे रहा है तथा कपोलों पर कुण्डल सुशोभित हो रहे हैं; उज्ज्वल हार , केयूर ( बाजूबन्द ) ,कंकण और किंकिणी कलाप से सुशोभित उन मन्जुलमूर्ति श्रीश्यामसुन्दर को भजता हूँ ।)
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