ईसाई धर्म का असली इतिहास' आप भी जाने यह सच
Автор: History Ki Mystery
Загружено: 2023-02-12
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'ईसाई धर्म का असली इतिहास' आप भी जाने सच
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आवाज़- सुमित यादव
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कैसे हुई ईसाइयत की शुरुआत
ईसाइयत ईसा मसीह की शिक्षाओं पर आधारित है और वह आगस्टस तथा टाइबेरियस के शासनकाल में यहां रहे थे। ईसा मसीह का जन्म करीब 6 ईसा पूर्व में येरुशलम के निकट बेथलेहम में एक साधारण परिवार में हुआ था।यहां यह स्पष्ट करना उचित होगा कि आमतौर पर सन ईस्वी की शुरुआत ईसा के जन्म से मानी जाती है लेकिन गृहों की गति और ईसाई कैलेंडर में हुए संशोधन के आधार पर हाल के अध्ययन यह बताते हैं कि ईसा का जन्म करीब 6 ईसापूर्व में हुआ था।
उन्होंने अपनी ज़िंदगी के पहले 30 साल उत्तरी फलस्तीन में मौजूद अपने गृह नगर नज़रत में गुज़ारे। जब ऐसा करीब 30 साल के हुए तो उन्होंने धर्म उपदेश देना शुरू कर दिया शायद वह एसीनी जैसे अनैतिक संप्रदायों के धर्म सिद्धांतों से अवगत थे और उनकी कुछ धारणाओं से सहमत थे।परम्पराओं के अनुसार ईसा ने रेगिस्तान में 40 दिन गुज़ारे।इस दौरान उन्होंने उपवास रखा और इबादत की। उसके बाद उन्होंने अपने ऊपर अवतरित ईश्वरीय संदेश का प्रचार प्रसार शुरू किया।
ईसा ने एक नए युग के शुरू होने का संदेश दिया जो 'ईश्वर के राज्य' की स्थापना के बाद आएगा। तमाम बुराइयां खत्म हो जाएंगी और सिर्फ सच्चाई का दौर होगा । इस राज्य में गरीबों को उनका उचित स्थान मिलेगा।ईसा ने लोगों से सदाचारी बनने और बुराई तथा गुनाह वाली चीजों से बचने को कहा। उन्होंने लोगों को बताया कि पूरे ब्रह्मांड का एक ईश्वर है जो सभी को प्यारे करता है और जिसकी इबादत सबके लिए खुली है। ईसा के उपदेश आम लोगों के दिलों को छूते थे।ईसा मसीह का यह मिशन करीब 3 साल तक चला। उनकी शिक्षाओं का सारांश 'सरमन ऑन द माउंट' में संकलित है। इसमें दबे कुचले लोगों के प्रति प्यार और करुणा जताने की बात बार बार उजागर की गई है। गरीब यहूदी इन विचारों की तरफ तुरन्त आकर्षित हुए लेकिन जब ईसा येरुशलम पहुंचे तो उन्हें यहूदी अभिजातों के बढ़ते विरोध का सामना करना पड़ा। इस समय जुडिया के रोमन प्रांत का प्रशासक पोंटियस पाइलेट था। पोंटियस पाइलेट के निर्देश पर राजद्रोह और विद्रोह के लिए लोगों के भड़काने के आरोप में मुकदमा चलाने के लिए ईसा को लाया गया। उन्हें सलीब पर चढ़ाकर मौत की सजा सुनाई गई। जब ईसा को सलीब पर चढ़ाया गया तो उनकी उम्र 36 साल थी।
हम निश्चित तौर पर नहीं कह सकते कि क्या ईसा ने खुद को कभी मसीहा के रूप में देखा या नहीं,लेकिन बाद में उनके अनुयायियों ने उनको मसीह माना । ईसा को क्राइस्ट का जो नाम दिया गया है वह एक यूनानी शब्द क्रिस्टोस से लिया गया है जिसका वही अर्थ होता है जो हिब्रु के माशियाह या मसीहा का है।
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