भगवद गीता अध्याय 11: विश्वरूप दर्शन योग | जब अर्जुन ने देखा ईश्वर का भयानक विराट रूप |
Автор: Anant Yatra (Archived)
Загружено: 2025-12-05
Просмотров: 42
"हे देव! आपके इस उग्र रूप को देखकर तीनों लोक भयभीत हो रहे हैं। मैं आपके मुख में धधकती हुई कालाग्नि देख रहा हूँ जिसमें सभी योद्धा समा रहे हैं।"
भगवद गीता का अध्याय 11 (विश्वरूप दर्शन योग) पूरी गीता का सबसे रोमांचक और विस्मयकारी अध्याय है। अध्याय 10 में भगवान की विभूतियाँ सुनने के बाद, अर्जुन की इच्छा होती है कि वे ईश्वर के उस परम रूप को अपनी आँखों से देखें।
भगवान कृष्ण अर्जुन को 'दिव्य दृष्टि' प्रदान करते हैं और अपना विराट रूप (Universal Form) प्रकट करते हैं।
अध्याय 11 के मुख्य दृश्य:
दिव्य चक्षु: साधारण आँखों से उस रूप को नहीं देखा जा सकता, इसलिए भगवान अर्जुन को दिव्य आँखें देते हैं।
अद्भुत रूप: अर्जुन देखते हैं कि भगवान के एक ही शरीर में हजारों मुख, हजारों भुजाएं और अनगिनत नेत्र हैं। उनके भीतर ब्रह्मा, शिव और सारे ऋषि-मुनि मौजूद हैं।
काल रूप : फिर अर्जुन को भगवान का भयानक रूप दिखता है। उनके मुख से प्रलय की अग्नि निकल रही है और भीष्म, द्रोण, कर्ण जैसे महान योद्धा उनके दांतों के बीच पीस रहे हैं। भगवान कहते हैं—"मैं लोकों का नाश करने वाला बढ़ा हुआ महाकाल हूँ।"
अर्जुन का भय और स्तुति: इस रूप को देखकर अर्जुन थर-थर कांपने लगते हैं और भयभीत होकर भगवान से शांत होने की प्रार्थना करते हैं।
यह अध्याय हमें ईश्वर की असीम शक्ति और ब्रह्मांड की नश्वरता का अहसास कराता है। इस दिव्य अनुभव के साक्षी बनें, केवल 'अनंत यात्रा' (Anant Yatra) पर।
#BhagavadGita #VishwaroopDarshan #Chapter11 #ViratRoop #KrishnaUniversalForm #ArjunaFear #KalaRoop #AnantYatra #HindiGita #SanatanDharma
Доступные форматы для скачивания:
Скачать видео mp4
-
Информация по загрузке: