सत्यभामा ने श्री कृष्ण को दान स्वरूप देने का संकल्प लिया | श्री कृष्ण | दिव्य कथाएँ
Автор: Tilak
Загружено: 2025-11-26
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सत्यभामा के पुण्यक व्रत का यज्ञ का प्रारम्भ नारद मुनि पूर्ण विधि विधान के साथ कराते है। सर्वप्रथम यज्ञ को निर्विघ्न संपन्न कराने के लिए सभी गणेश जी की आरती का गायन करते हुए उनका आह्वान करते है। तत्पश्चात सत्यभामा और श्री कृष्ण पारिजात वृक्ष से अपनी छाया में यज्ञ अनुष्ठान सम्पन्न कराने का आशीर्वाद माँगते है। पारिजात वृक्ष अपनी डाल से फूल सत्यभामा के हाथों में गिरा कर स्वीकृति प्रदान करता है। जब सत्यभामा यज्ञ का संकल्प करने लगती है तो नारद मुनि कहते है कि यज्ञ का संकल्प करते समय दान करना आवश्यक है। सत्यभामा कहती है कि जितना सोना, जितने आभूषण दान में चाहिए उतना वह दान करने के लिए वह तैयार है। नारद मुनि कहते है कि पुण्यक व्रत में सबसे अधिक प्रिय वस्तु दान करनी पड़ती है। सत्यभामा सोच में पड़ जाती है और फिर कहती है कि उसके लिए संसार में सबसे अधिक प्रिय द्वारिकाधीश है। यह सुन नारद मुनि प्रसन्न होते हुए कहते है कि अब आपको द्वारिकाधीश ही दान करने पड़ेंगे। सत्यभामा दुविधा में पड़ जाती है कि वह अपने पति का सबसे अधिक प्रेम पाने के लिए यज्ञ कर रही है, उनका वह कैसे दान कर दे। तब नारद मुनि कहते है कि ब्राह्मण को दी हुई वस्तु उससे खरीदी भी जा सकती है। द्वारिकाधीश को वापस पाने का उपाय जान सत्यभामा श्री कृष्ण को दान देने का संकल्प करती है। संकल्प पूरा होते ही श्री कृष्ण को नारद मुनि स्वामी की भाँति आदेश देने लगते है। श्री कृष्ण भी कहते है कि स्वामी की आज्ञा पालन करना दास का धर्म होता है। सत्यभामा को कुछ भी समझ में नहीं आता है, उसकी आँखों से आँसू निकलने लगते है और वह कहती है कि उसे पति के छिन जाने वाला पुण्यक व्रत नहीं करना है। श्री कृष्ण संकेत में नारद मुनि के कहते है कि अभी मन का मैल धुला है, मन की गहराइयों में स्थित अहंकार की जड़े नहीं समाप्त हुई है, हमें उन्हें समाप्त करना है। रुक्मिणी समझ जाती है कि श्री कृष्ण नारद मुनि के साथ मिल कर लीला कर रहे है।
संसार में यदि मनुष्य को कर्म के साथ धर्म के सही सामंजस्य को समझना हो तो इसके लिए श्रीमद् भगवत गीता से बड़ा ग्रंथ नहीं हो सकता। यह ग्रंथ दिव्य है इसीलिए विश्व में सनातन धर्म के अलावा अन्य धर्मों को मानने वाले मनुष्य भी श्री मद् भगवत गीता और श्री कृष्ण के अनुयायी है। सनातन धर्म में श्री भगवान कृष्ण को सोलह कलाओं से पूर्ण अवतार माना गया है। मानव जीवन से जुड़े सभी प्रश्नो का उत्तर आपको श्रीकृष्ण के जीवन से मिल सकता है। श्री भगवत् गीता कृष्ण और अर्जुन का संवाद व उपदेशों का संकलन है। इन उपदेशों को आप अपने जीवन में समाहित कर परमात्मा से जुड़ सकते है। “तिलक” अपने संकलन “दिव्य कथाएं” के इस चरण में श्री कृष्ण से जुड़े प्रसंगों को आपके समक्ष प्रस्तुत करेगा। भक्ति भाव से इनका आनन्द लीजिये और तिलक से जुड़े रहिये।
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