महाभारत के कुछ पल
Автор: Bandana Bose Ghosh
Загружено: 2025-11-26
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मैं समय हूँ।
ब्रह्माण्ड को अनदेखे धागों से बाँधकर
मैं अदृश्य पर अनंत हूँ।
अतीत की प्रतिध्वनि और
भविष्य की आहट हूँ।
मैं हूँ क्षणों की एक चिरन्तन श्रृंखला
भूत के गर्भ से निकलकर
वर्तमान युग की देह में गतिशील
भविष्य की यात्रा करता हूँ और अब आमंत्रित करता हूँ
महाभारत काल के साक्षी
महर्षि वेद व्यास को
और अब मैं केवल दृष्टा बनता हूँ क्योंकि
मैं तो अकाय हूँ।
-महाभारत केवल एक महाकाव्य नहीं,
एक विश्वकोश है
जिसमें गुण, अवगुण, हिंसा और द्वेष है,
पारिवारिक युद्ध, प्रेम, स्त्री और पितृसत्ता का,
रचनात्मक परिवेश है।
माया,भ्रम और भ्रांति का,
आँखों में बँधी पट्टिका का,
अधरों पर प्रतिज्ञा सूत बँधे,
शकुनि, मायावी, चौसर पर
कुरुओं के भाग्य थे तभी जगे।
महाभारत के व्याकरण में,
ऐसी कुछ घटनाएं थीं,
कर्ता कृष्ण,कर्म था अर्जुन,
बाकी सब संज्ञाएं थीं।
कभी चक्र, कभी चक्रांत चले,
कभी लाक्षागृह में ज्वाल जले,
निंदित अनीतियों जालों को,
सुलझाने द्वापर कृष्ण चले।
गर्जन-तर्जन खम ठोंक चले,
थे साम दाम दण्ड भेद चले,
टालने चले जब कृष्ण युद्ध,
दुर्योधन उन्हें ही बाँधने चले।
कुरु लांघ चले सब सीमाएं,
आयुध से आयुध टकराए,
नक्षत्र-निकर भी घबराए,
गांगेय भीष्म, और कौंतेय कर्ण,
द्रोण सरीखे गुरु आए।
गिरि को धारण करते गिरिधर ,
स्थिर था अस्त्र ना धारेंगे,
पाँडवों संग स्वयं कृष्ण वहाँ,
कुरु नारायणी सेना लेंगे।
कुरुक्षेत्र में भीषण युद्ध हुआ,
कितना कुछ नीति विरुद्ध हुआ,
तप,क्षमा,दया,सब हुए शेष,
माधव ने दिया संदेश विशेष।
अठारह संख्या अनबूझ रहस्य,
अठारह संख्या थी विशेष्य,
अठारह दिन का युद्ध प्रलय,
अठारह लाख शब्दों का विलय।
अठारह पर्वों की गाथा,
अठारह चरित्र ही थे कारक,
अठारह अक्षौहिणी सेना थी,
अठारह अध्याय की थी गीता।
अठारह योद्धा शेष रहे,
बाकी इस युद्ध की भेंट चढ़े,
वे आदि से स्वर्गारोहण तक,
जीवन के गहरे सार बने।
और अब फिर मैं समय हूँ,
मैं यहीं था, मैं यहीं हूँ,
आगे भी मैं ही रहूंगा,
एक ब्रह्माण्ड और दूजा मैं,
फिर साक्षी बनूँगा,
किसी और घटना का,
क्योंकि मैं समय हूँ ना!
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