भारत पाकिस्तान के विभाजन पे OSHO के विचार - हर विधार्थी को सुनना चाहिए, आप अपना राय अवश्य दे|
Автор: PHILO PSYCHIC RULE
Загружено: 2025-11-03
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🕊️ ओशो का दृष्टिकोण: भारत–पाकिस्तान विभाजन और गांधी की भूमिका
ओशो का कहना था कि भारत का विभाजन केवल राजनीतिक या भौगोलिक घटना नहीं था, बल्कि वह मानव चेतना की एक गहरी मनोवैज्ञानिक टूटन थी।
उनके अनुसार, भारत का हृदय दो भागों में इसलिए बँटा क्योंकि सदियों से भीतर दबे धार्मिक अहंकार, जातीय श्रेष्ठता और राजनीतिक अंधत्व को सही दिशा नहीं मिली।
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🔹 1. गांधी की धार्मिक राजनीति — विभाजन की जड़
ओशो के अनुसार, गांधी ने “धर्म को राजनीति में उतारने” की कोशिश की।
उन्होंने कहा —
“गांधी ने राजनीति को धर्म बना दिया और धर्म को राजनीति में घसीट लिया।
जब धर्म राजनीति का उपकरण बनता है, तो वह शांति नहीं, संघर्ष पैदा करता है।”
गांधी का ‘रामराज्य’, ‘गो-रक्षा’ और ‘प्रार्थना-सभाओं’ वाला प्रतीकवाद
मुस्लिम समाज में धीरे-धीरे अलगाव और असुरक्षा की भावना पैदा करता गया।
इससे जिन्ना जैसे नेताओं को यह कहने का मौका मिला कि “हिंदुस्तान मुसलमानों का देश नहीं रहा।”
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🔹 2. अहिंसा का भ्रम और दबी हुई हिंसा
ओशो ने कहा कि गांधी की अहिंसा एक दार्शनिक आदर्श थी, पर मानव की वास्तविक प्रवृत्ति को वह समझ नहीं पाए।
“उन्होंने मनुष्य के भीतर के हिंसक बीजों को दबाया, समाप्त नहीं किया।
जब दमन होता है, तो वही ऊर्जा किसी और रूप में विस्फोट करती है।”
यह दबा हुआ क्रोध 1947 के दंगों, कत्लेआम और विभाजन के रूप में फटा —
जहाँ मनुष्य ने मनुष्य को न केवल मारा, बल्कि अपनी आत्मा को भी घायल किया।
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🔹 3. गांधी — एक संत, पर राजनीतिक रूप से अंधे
ओशो गांधी का सम्मान करते थे, पर उन्हें “राजनीतिक रूप से अज्ञानी” मानते थे।
“गांधी एक धार्मिक व्यक्ति थे, पर राजनीति का क्षेत्र धर्म से नहीं चलता —
वहाँ यथार्थ, बुद्धि और गहराई की आवश्यकता होती है।”
उनके अनुसार, गांधी ने अपने नैतिक आदर्शों को राजनीति पर थोपने की कोशिश की,
जिससे राजनीति न तो आध्यात्मिक बनी, न व्यावहारिक रही।
परिणाम — भावनाओं से भरी पर निर्णयहीन नेतृत्व जिसने विभाजन को रोका नहीं, बल्कि तेज़ किया।
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🔹 4. ब्रिटिश रणनीति और भारतीय मासूमियत
ओशो ने माना कि ब्रिटिश ‘Divide and Rule’ नीति ने आग को हवा दी,
पर गांधी और कांग्रेस ने अनजाने में उसी नीति को मजबूत किया।
“जो लोग स्वतंत्रता के लिए लड़ रहे थे, वही लोग मन के स्तर पर अभी भी गुलाम थे —
अपने धर्म, अपनी जाति, अपने मत की सीमाओं के।”
ब्रिटिश सत्ता तो चली गई, पर उसकी मानसिक विभाजन-रेखाएँ भारत के भीतर रह गईं।
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🔹 5. ओशो का अंतिम दृष्टिकोण — विभाजन मानवता का था
“भारत और पाकिस्तान का विभाजन केवल जमीन का नहीं था —
वह मनुष्य की आत्मा का विभाजन था।”
ओशो ने कहा कि जब तक मनुष्य धर्म, जाति और राष्ट्र की पहचान से ऊपर नहीं उठेगा,
तब तक हर युग में कोई न कोई “विभाजन” होता रहेगा —
कभी सीमाओं में, कभी विचारों में, कभी हृदयों में।
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🧭 निष्कर्ष:
ओशो का संदेश साफ़ था —
गांधी या जिन्ना दोषी नहीं, बल्कि वह मानसिकता दोषी है जो धर्म और राजनीति को एक कर देती है।
जब तक मनुष्य “हिंदू, मुस्लिम, भारतीय, पाकिस्तानी” के नाम से जीता रहेगा,
तब तक वह अपनी वास्तविक पहचान — साक्षी, चेतना, मानवता से दूर रहेगा।
💬 संक्षिप्त उद्धरण
“ओशो कहते हैं —
भारत-पाकिस्तान का विभाजन नक्शे पर नहीं, मन में हुआ था।
गांधी ने धर्म को राजनीति में उतारा — और वहीं से मानवता टूटी।”
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