[Mankiw principles of economics 36] 36. मुद्रास्फीति-बेरोजगारी_समझौता
Автор: UPSC Economimst
Загружено: 2025-10-04
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Mankiw अर्थशास्त्र के सिद्धांत 36वें व्याख्यान "मुद्रास्फीति-बेरोजगारी समझौता" का सारांश यहाँ दिया गया है [00:00]:
परिचय [00:00]: किसी भी अर्थव्यवस्था के दो सबसे बड़े दुश्मन बढ़ती महंगाई (inflation) और बढ़ती बेरोजगारी हैं। सरकारें इन दोनों को नियंत्रित करना चाहती हैं, लेकिन एक को कम करने की कोशिश में दूसरा बढ़ सकता है। यह एक ऐसा सौदा है जिसमें हमें हमेशा एक को चुनने के लिए दूसरे को छोड़ना पड़ता है।
दीर्घकाल बनाम अल्पावधि [00:44]:
दीर्घकाल (Long Run) [00:57]: दीर्घकाल में महंगाई और बेरोजगारी का आपस में कोई सीधा संबंध नहीं है। महंगाई नोटों की छपाई पर निर्भर करती है, और बेरोजगारी हमेशा अपनी प्राकृतिक दर पर वापस आ जाती है [01:03].
अल्पावधि (Short Run) [01:15]: अल्पावधि में, बेरोजगारी कम करने के लिए थोड़ी अधिक महंगाई की कीमत चुकानी पड़ती है।
फिलिप्स वक्र (Phillips Curve) [01:21]:
1950 और 60 के दशक में, अर्थशास्त्रियों को फिलिप्स वक्र मिला, जो महंगाई और बेरोजगारी के बीच एक सरल, उल्टा संबंध दर्शाता था [01:28]. जब महंगाई बढ़ती है, तो बेरोजगारी घटती है, और जब महंगाई घटती है, तो बेरोजगारी बढ़ती है [01:47].
यह उल्टा रिश्ता कैसे आता है [02:02]: मंदी में, लोग कम खरीदारी करते हैं, कंपनियां कम उत्पादन करती हैं और लोगों को नौकरी से निकालती हैं, जिससे बेरोजगारी बढ़ती है और महंगाई कम होती है [02:11]. तेजी में, लोग खूब खर्च करते हैं, कंपनियां ज्यादा सामान बनाने के लिए अधिक लोगों को नौकरी पर रखती हैं, और मांग बढ़ने पर दाम बढ़ा देती हैं, जिससे बेरोजगारी कम होती है और महंगाई बढ़ती है [02:27].
1960 के दशक में वास्तविक डेटा इस सिद्धांत पर एकदम फिट बैठ रहा था, जिससे ऐसा लग रहा था कि नेताओं के पास एक "पॉलिसी मेन्यू" है जहां वे बेरोजगारी या महंगाई में से चुन सकते हैं [02:47].
फिलिप्स वक्र की विफलता: स्टैगफ्लेशन (Stagflation) [03:17]:
1970 का दशक आया और इसने पूरी कहानी ही पलट दी। अचानक महंगाई और बेरोजगारी, जो हमेशा उल्टी दिशा में चलते थे, दोनों एक साथ बढ़ने लगे [03:38]. इस स्थिति को स्टैगफ्लेशन कहा गया [03:53].
कारण: इसका सबसे बड़ा कारण आपूर्ति झटका (Supply Shock) था। 1970 के दशक में OPEC देशों द्वारा तेल की आपूर्ति में अचानक कमी से पेट्रोल-डीजल के दाम आसमान छू गए [04:00]. इससे परिवहन और उत्पादन की लागत बढ़ी, चीजें महंगी हुईं, मुनाफा घटा, उत्पादन गिरा और लोगों की नौकरियां जाने लगीं [04:15].
प्राकृतिक दर परिकल्पना (Natural Rate Hypothesis) [04:28]:
मिल्टन फ्रीडमैन और एडमंड फेल्प्स ने इस समस्या का समाधान किया। उन्होंने बताया कि फिलिप्स वक्र का सौदा तभी काम करता है जब लोग बढ़ी हुई महंगाई की उम्मीद नहीं कर रहे होते हैं [04:36]. सबसे महत्वपूर्ण शब्द "अपेक्षाएं" (expectations) हैं [04:49].
उनका तर्क था कि हर अर्थव्यवस्था में बेरोजगारी की एक स्वाभाविक या प्राकृतिक दर होती है [05:04]. सरकारें महंगाई बढ़ाकर थोड़े समय के लिए बेरोजगारी को इससे नीचे ला सकती हैं, लेकिन आखिर में बेरोजगारी वापस अपनी प्राकृतिक दर पर लौट आएगी [05:12].
अपेक्षाएं कैसे काम करती हैं [05:24]: जब अर्थव्यवस्था प्राकृतिक बेरोजगारी दर पर होती है और लोग कम महंगाई की उम्मीद कर रहे होते हैं, तो सरकार अचानक महंगाई बढ़ाती है, जिससे कंपनियों को लगता है कि मांग बढ़ गई है और वे अधिक लोगों को नौकरी पर रखती हैं [05:31]. लेकिन जल्द ही लोग यह समझ जाते हैं कि सिर्फ उनकी सैलरी नहीं बल्कि हर चीज का दाम बढ़ गया है, उनकी उम्मीदें बदल जाती हैं, और वे अब ज्यादा महंगाई की उम्मीद करने लगते हैं [05:49]. नतीजा यह होता है कि बेरोजगारी वापस अपनी प्राकृतिक दर पर लौट आती है, लेकिन अब सब कुछ पहले से ज्यादा महंगा हो चुका होता है [06:02].
दीर्घकाल में फिलिप्स वक्र [06:15]: दीर्घकाल में फिलिप्स वक्र नीचे की तरफ झुका हुआ नहीं बल्कि सीधा खड़ा (vertical) होता है। इसका मतलब है कि दीर्घकाल में महंगाई और बेरोजगारी के बीच कोई सौदा नहीं हो सकता है, और सरकारें ज्यादा महंगाई की कीमत चुकाकर हमेशा के लिए कम बेरोजगारी नहीं खरीद सकतीं [06:22].
आज के लिए सबक [06:36]:
यह ढाँचा हमें विभिन्न आर्थिक दौरों को समझने में मदद करता है [06:42].
80 का दशक: अमेरिकी फेडरल रिजर्व के चेयरमैन पॉल वॉकर ने महंगाई की उम्मीदों को तोड़ने के लिए जानबूझकर एक बड़ी मंदी आने दी [06:50].
90 का दशक: अच्छी आपूर्ति के कारण महंगाई और बेरोजगारी दोनों कम रहे [06:57].
महामारी: इसने आपूर्ति और मांग दोनों को झटका दिया, जिससे महंगाई तेजी से बढ़ी [07:04].
वर्तमान बहस: 2022 में महामारी के बाद जब महंगाई आसमान छू रही थी, तो एक्सपर्ट्स इसी बात पर बहस कर रहे थे कि क्या यह सरकारी नीतियों की वजह से है और यह कितने समय तक चलेगा [07:11].
मुख्य बातें [07:28]:
महंगाई और बेरोजगारी का सौदा सिर्फ अल्पावधि का है और यह अस्थाई है [07:35].
दीर्घकाल में ऐसा कोई सौदा मौजूद नहीं है [07:42].
लोगों की उम्मीदें (expectations) गेम चेंजर होती हैं [07:47].
आपूर्ति में अचानक आने वाले झटके (जैसे तेल के दाम या महामारी) सारे समीकरण बिगाड़ सकते हैं और सरकार के लिए हालात बहुत मुश्किल बना देते हैं [07:54].
अंतिम प्रश्न [08:07]: जब देश में महंगाई और बेरोजगारी दोनों एक साथ बढ़ रही हों, तो एक सरकार को पहले किससे लड़ना चाहिए? क्या महंगाई को काबू करने के लिए एक बड़ी मंदी का जोखिम लेना चाहिए, या नौकरियां बचाने के लिए और महंगाई बढ़ने का खतरा उठाना चाहिए? इसका कोई आसान जवाब नहीं है, और यही अर्थशास्त्र को इतना दिलचस्प बनाता है [08:25].
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