संत विरोधी नहीं हितैषी होते हैं
Автор: parakh sandesh
Загружено: 2025-11-03
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जो पूर्ण रूप से शांत हुए होते हैं जिसकी मन इंद्रियों एक रस होकर आत्मरत होता है उसे हम संत कहते हैं। संत का साहचर्य पाकर यह समाज अपने कर्तव्य पर डटे रहता है। संत यदि नहीं होता इस संसार में तो यह संसार, विचलित होकर अपना स्वरूप बिगाड़ लेता इसीलिए इस संसार में संत अनिवार्य है क्योंकि वह कभी भी विरुद्ध बातें नहीं किया करते हैं। उनके हृदय में विरोध की जगहपर क्षमा, करूणा, निष्ठा आदि होता है। परम पूज्य गुरुदेव जी इस प्रवचन में हमें यह समझाना चाहते हैं की संत विरोधी नहीं हितेषी होते हैं आइए सुनें इसका पूरा विवरण जो अत्यंत लाभप्रद है...
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