श्री शिरगुल महाराज की अमर गाथा (भाग १) ।। History of Devta Shirgul Maharaj (Part 1) 🚩💫⚔️
Автор: Devbhoomi Himachal : The Great Riyasat-e-Sirmaur 🚩
Загружено: 2024-10-06
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Churdhar Sanctuary is named after the Churdhar peak, which has an elevation of 3647 metres above sea level and is located in Sirmour, Shimla district of the indian state of Himachal Pradesh. Churdhar peak is the highest peak in Sirmour district and is also the highest peak in the outer Himalayas. The peak has a great religious significance for the people of Sirmour, Shimla, Chaupal and Solan of Himachal Pradesh and Dehradun of Uttrakhand. Churdhar is a holy place related with Shri Shirgul Maharaj also know as Chureshwar Maharaj, a deity widely worshipped in Sirmour and Chaupal. The major god of area is Lord Shirgul Maharaj. Many gods goes their for religious pilgrim and bath at the holy temple of lord shirgul.
Shirgul Devta and Bijjat Maharaj are centuries old deit ies of Himachal situated at Churdhar in Sirmaur. Both deities had a centuries old fight but now after 1, 500 year, both the deities are ready to end their fight and they will meet each other very soon at a joint jagaran in the region. People of two panchayats are associated with these deities. Chadhna and Devmanal panchayats are the two panchayats where people couldn’t organise fairs and festivals together due to the fight between their deities. But, now they will come together for a jagaran, local people informed. They stated that once both the deities shared a great relationship with each other which was known as shata-pasha. But due to a fight they did not talk to each other or not even met in local fairs. But now the deities have ordered the local people to stop the fight and organise a deity fair where they will meet each other. It was decided in a joint meeting of both the panchayats, where panchayat pradhan and other members of the villages were present.
यह सुलतानों के शासन काल की १३वीं सदी की गाथा है, उन दिनों दिल्ली मेंं तुर्कों का शासन था, जिन्हें दास वंश के शासक भी कहा जाता था। उनका शासन १२०६ से १२९० ईस्वी तक चला। जनश्रुति के अुनसार जिसमें तुर्कों के साथ युद्ध का वर्णन आता है और देवताओं की पूजा में भी यह तथ्य विद्यमान है। इससे इस तथ्य की पुष्टि होती है कि श्री शिरगुल देव तथा उनके भाई बहनों का अवतार तुर्की सल्तनत १२०६ से १२१० ईस्वी के शासन काल में इन महान दैवीय शक्तियों ने अवतार लिया था।
जिला सिरमौर की राजगढ़ तहसील मे राजगढ़-हाब्बन रोड पर १८ कि.मी. की दूरी पर शाया नामक गांव स्थित है वहां पर श्री भुकडू राजा राज्य करते थे उनके सन्तान न होने से दुखी थे, उन्होंने सन्तान की प्राप्ति के कई उपाय किए परन्तु कोई लाभ प्राप्त नहीं हुआ। इस समयावधि में नाथ संप्रदाय के महान तपस्वी योगी 1008 गुरू इतवारनाथ महाराज भी राजगढ़ के ठौड़ निवाड़ में वर्षों से तपस्यारत थे, वह अपनी दैवीय शक्तियों के कारण सर्वत्र प्रसिद्धि प्राप्त थे ।। भुकडू महाराज गुरू इतवारनाथ जी की शरण में पहुंचे और उनसे संतान प्राप्ति का उपाय पूछा।। गुरू महाराज को दैवीय शक्तियों से भविष्य के गर्भ में क्या है वह ज्ञात कर लिया और राजा से कहा कि काशमीर के देश नाथ कौल उर्फ देशु पण्डित बहुत विद्वान पंडित है। वह सन्तान न होने के प्रति अवगत एवं उपाय कर सकते है। इसलिए तुम कश्मीर जाओ।।
इसी चिन्ता को लेकर भुकडू महाराज ने काशमीर की राह ली, काशमीर जो कि यहां से अनुमानित ७०० कि.मी. का पैदल तथा उबड़-खाबड़ उतराई व चढ़ाई वाला अति दूर्गम सफर, तय करके कुछ ही दिनों में काशमीर पहुंच गए। पण्डित जी को सोने की बजीऊरी (सीताफल के आकार की) भेंट की और सजल नयनों से अपनी दास्तान सुनाई। पण्डित जी शिव उपासक, तांत्रिक तथा ज्योतिषि विद्या के ज्ञाता थे। उन्होंने भुकडू महाराज को घर का दोष, खोट बताया और उपाय भी। उन्होंने कुल बदलने की बात भी कही कि आपको ब्राह्मण कुल की कन्या से शादी करनी होगी। पण्डित जी ने भुकडू महाराज के प्रति संतान प्राप्ति हवन यज्ञ कर, हवन की राख तथा मेवा मन्त्रित कर महाराज को दिया और कहा कि अपनी दोनों रानियों को खिलाना शायद पहली रानी के भी सन्तान हो जाए। जो सन्तान आपके घर में होगी व पूर्ण कलाओं से परिपूर्ण देव रूप होगी। चिंता के गहरे सागर में डूबे श्री भुकडू महाराज ने घर की राह ली और कुछ दिनों पश्चात घर पहुंच गए। अति दुखी मन से उन्होंने अपनी प्रिय रानी दयमन्ती को सारी बातें बताई जो पण्डित जी ने भुकडू महाराज को बताई थी और दूसरी शादी की बात भी। रानी साहिबा ने कहा महाराज मुझे सौतन आने का दुख नहीं बल्कि खुशी होगी अगर आपके सन्तान हो जाती है।
रानी दमयन्ती पास ही के गांव मनौण पहूंची और सजल नयनों से अपनी दुख भरी दास्तान श्री लोज पण्डित को बताई और महाराज के लिए उनकी बहन दुदमा की मांग की। विवाह के पश्चात वह मेवा मिष्ठान जो काशमीर के पण्डित जी ने दिया था दोनों रानियों को खिलाया जिससे दोनों रानियां गर्भवती हो गई। श्री दूलाराम चौहान द्वारा लिखित पुस्तक "शिरगुल महिमा" अनुसार काश्मीर में पंडित द्वारा ग्यारह दिनों तक रूद्र यज्ञ किया गया था जिसके परिणामस्वरूप भुकडू महाराज के घर दैवीय शक्तियों का अवतार हुआ ।।
BGM : • Meditative Flute Music | Madhyamavathi (Kr...
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