हरि अंदर है कहने से नहीं दिखता | जो मंथन करे वही मक्खन पाए | संत हरपाल दास प्रवचन।
Автор: संत हरपाल दास
Загружено: 2025-12-03
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बहुत विरला ही कोई जीव हरि का दर्शन करता है।
भाग्यशाली वही है जिसने हरि को भीतर देखा है।
बाकी तो सारा संसार कहने और सुनने में ही भटकता रहता है।
जैसे सब जानते हैं कि दूध के अंदर मक्खन होता है…
पर केवल कहने से मक्खन नहीं निकलता।
जब तक दूध का मंथन नहीं होता, तब तक मक्खन प्राप्त नहीं होता।
इसी प्रकार “हरि अंदर है” ऐसा कह देने से
हरि प्रकट नहीं हो जाते।
जैसे तीली के अंदर आग होती है,
पर बिना युक्ति के वह आग प्रकट नहीं होती।
जब आग प्रकट होती है तो तीली जल जाती है,
मिट जाती है और आग का ही रूप हो जाती है।
जिस दिन इस जीव के भीतर हरि रूपी अग्नि प्रकट हो जाएगी,
उस दिन यह जीव रह ही नहीं सकता —
वह ईश्वर में विलीन हो जाएगा।
सबसे बड़ी बात यही है कि
अपना वजूद कोई मिटाना नहीं चाहता।
इसी कारण मान-अपमान, दुख और अहंकार बने रहते हैं।
जब वजूद मिट जाता है,
तब न मान रहता है,
न अपमान…
फिर जीव हरि का ही स्वरूप हो जाता है।
कबीर साहेब कहते हैं —
"हद हद करते सब गए,
बेहद गया न कोय;
बेहद के मैदान में,
रहे कबीर सोय।"
इस प्रवचन में आप जानेंगे —
✅ हरि भीतर कैसे प्रकट होता है
✅ वजूद क्यों नहीं मिटता
✅ अंदर की आग कैसे जगती है
✅ सतगुरु की दिव्य दृष्टि क्या है
✅ कहने और अनुभव का अंतर
✅ सच्चा दर्शन क्या है
संत शेरसिंह दास जी महाराज के वचनों के अनुसार —
"अंदर की आँख सतगुरु खोलते हैं।"
बाहरी आँख बाहर देखती है,
अंदर नहीं…
दास हरपाल कहते हैं —
"जिसने हरि को भीतर देख लिया,
उसे हरि हर जगह दिखाई देने लगते हैं।"
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