राजनीतिक आपदा का शिकार बन चुका उत्तराखंड | Extra Cover 86
Автор: Baramasa
Загружено: 2025-08-25
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यूं तो आज के एक्स्ट्रा कवर में विस्तार से चर्चा होनी थी कि हमारे माननीयों ने गैरसैण में हुए विधान सभा सत्र में क्या-क्या फरकाया, सवाल होने थे कि हम देश के उन राज्यों में क्यों हैं जहां के विधायकों को तनख़्वाह बाक़ी प्रदेशों से ज़्यादा मिलती है लेकिन विधान सभा के सत्र सबसे कम समय के लिए चलते हैं, सवाल होने थे इस तस्वीर पर कि आख़िर विधान मंडल दल की बैठक में दुष्यंत गौतम और अजय कुमार क्या कर रहे हैं, किसके खर्च पर ये लोग गैरसैण पहुंचे हैं, क्या हमारे चुने हुए विधायक ख़ुद से इतने भी क़ाबिल नहीं हैं कि विधान सभा सत्र की कार्य योजना ख़ुद से बना सकें जो उन्होंने यहाँ भी पार्टी संगठन के पदाधिकारियों को बैठाया हुआ है जिनका विधान सभा से कोई लेना-देना नहीं होना चाहिए. आज सवाल होने चाहिए थे विपक्ष के रवैये पर जिन्हें इस सत्र का इस्तेमाल प्रदेश के आक्रोश को आवाज देने के लिए करना चाहिए था, मजबूत तर्कों के साथ सदन में एक-एक कर लोगों की पीड़ा रखनी चाहिए थी ताकि सत्ता के नशे में झूम रहे मंत्रियों को झपोड़ा जा सकता, विपक्ष को लड़ना चाहिए था इस बात के लिए कि सत्र का समय बढ़ाया जाए और उन्हें बोलने का भरपूर मौक़ा दिया जाए लेकिन विपक्ष ने सिर्फ़ हल्ला मचाया जिस हल्ले का भरपूर इस्तेमाल सरकार बहादुर ने किया. इसी हल्ले के बीच सरकार ने अपने वो तमाम प्रस्ताव ध्वनि मत से पारित कर लिए जिन्हें सरकार करना चाहती थी और फिर इसी हल्ले को अपना इस्केप रूट बनाते हुए वो पूरी निर्लज्जता के साथ सिर्फ़ डेढ़ दिन में मात्र पौने तीन घंटे का सत्र चलाकर निकल आई और जाते-जाते सदन न चल पाने का ठीकरा भी विपक्ष के ही सिर फोड़ गई. आज के एक्स्ट्रा कवर में विस्तार से चर्चा होनी थी कि सदन में क्या-क्या सवाल जवाब हो सके, किन जरूरी मुद्दों को सदन में जगह मिली और किन मुद्दों को इस बार भी कुलणे लुका दिया गया, सवाल होने थे कि क्यों पहाड़ियों के जीवन को इतना सस्ता समझा जा रहा है कि पहाड़ की ख़तरनाक सड़कों पर आज भी 246 बसें ऐसी चलाई जा रही हैं जो अपनी उम्र पूरी कर चुकी हैं और जिनमें सफर करना अब ख़तरनाक बन चुका है. एक्स्ट्रा कवर में सवाल होने थे कि क्यों राष्ट्रीय खेलों में volunteer बने युवाओं को इतनी महीनों बाद भी उनका मेहनताना नहीं दिया गया है, क्यों हमारे धामों में बद्रीनाथ से लेकर जागेश्वर तक, मास्टर प्लान के नाम पर स्थानीय लोगों और हक़-हकूक धारियों के अधिकारों को तानाशाही तरीके से रौंदा जा रहा है, क्यों ASO से लेकर तमाम अन्य पदों पर अब तक नियुक्ति नहीं दी जा रही, क्यों प्रतियोगी परीक्षाओं के परिणाम जारी करने में आपराधिक देरी की जा रही है, क्यों प्रदेश के शिक्षकों को हड़ताल के लिए मजबूर होना पड़ रहा है और क्यों आपदाओं से ग्रस्त हमारे प्रदेश में आज भी योजनाएं ऐसे बनाई जा रही हैं जो भविष्य में और भी बड़ी आपदाओं को न्यौता देने वाली हैं. लेकिन इन तमाम जरूरी मुद्दों से पहले आज जरूरत है उत्तराखंड में पनप चुकी उस राजनीतिक कुरीति पर विस्तार से बात करने की जो अब जानलेवा हो चुकी है. उत्तराखंड ऐसी भीषण राजनीतिक आपदा की चपेट में है जो वक्त के साथ इतनी विकराल हो चुकी है कि प्रत्यक्ष-परोक्ष रूप से सभी को धीरे-धीरे लील रही है. इसका सबसे ताज़ा उदाहरण है 32 वर्षीय जितेंद्र कुमार जिन्होंने बीती 21 तारीख को ख़ुद को गोली मार कर आत्म हत्या कर ली.
Himanshu Chamoli | हिमांशु चमोली
Pushkar Singh Dhami | पुष्कर सिंह धामी
Jitendra Kumar | जितेंद्र कुमार
Uttarakhand BJP | उत्तराखंड भाजपा
Uttarakhand Congress | उत्तराखंड कांग्रेस
Harak Singh Rawat | हरक सिंह रावत
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