बर्तन जोगी वस्तु का रहस्य | कबीर साहब का शब्दार्थ | शिष्य की काबिलियत और सतगुरु की पहचान | प्रवचन
Автор: संत हरपाल दास
Загружено: 2025-12-21
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संत कबीर साहब कहते हैं—
“बरतन जोगी वस्तु माग सतगुरु से जो,
वो शरीर के अंदर भी बरताव में आए
और इस ब्रह्मांड के अंदर भी बरताव में आए।
मुझे ऐसी वस्तु प्रदान कीजिए
जो बर्तन जैसी हो —
जिसमें होवे न टुकड़ा।”
इस अमूल्य वाणी का सार यह है कि
सतगुरु से मांगी जाने वाली वस्तु
खंडित ज्ञान नहीं,
पूर्ण ब्रह्मज्ञान होना चाहिए —
जो जीवन के हर स्तर पर उपयोग में आए,
अंदर भी और बाहर भी।
कबीर साहब आगे समझाते हैं—
“बगुले को मोती की परख नहीं होती,
मोती तो हंसों का आहार है।”
अर्थात् जैसे बगुला मोती की क़ीमत नहीं जानता,
वैसे ही मूढ़ मनुष्य
आत्मज्ञान की पहचान नहीं कर पाता।
आत्मज्ञान वही ग्रहण कर सकता है
जिसमें शिष्य की योग्यता हो।
इस सत्संग में संत हरपाल दास जी
बहुत स्पष्ट रूप से बताते हैं कि
👉 सतगुरु ज्ञान देता है, पर थोपता नहीं
👉 शिष्य की पात्रता ही तय करती है कि उसे क्या मिलेगा
👉 ब्रह्मज्ञान अयोग्य को नहीं, केवल योग्य को सौंपा जाता है
जैसे बेटी के विवाह में
योग्य वर खोजा जाता है,
वैसे ही यह ब्रह्मज्ञान
संतों की बेटी है —
इसे भी उसी को दिया जाता है
जो इसकी क़ीमत समझे,
इसे संभाल सके
और इसकी मर्यादा रख सके।
“हर हीरे की गठड़ी सस्ते में मत खोल,
आएगा कोई जौहरी, ले जाएगा इसे महंगे मोल।”
यह वाणी सिखाती है कि
अपने आत्म-मूल्य, विश्वास और ज्ञान
को कभी सस्ता न समझें।
सही समय पर
सही पहचान करने वाला
अवश्य आता है।
🙏 यह उपदेश
महापुरुषों की अमूल्य धरोहर है
जो साध संगत के कल्याण हेतु है।
📌 वक्ता: संत हरपाल दास जी
🎥 पूरा विषय विस्तार से इस लॉन्ग वीडियो में समझाया गया है।
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🙏 सतगुरु की महिमा अपरम्पार 🙏
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