काशी विश्वनाथ शिव स्तुति :- पशूनां पतिं पापनाशं परेशं॥ kashi Vishwanath॥ Varanasi॥
Автор: Varanasyaam
Загружено: 2025-09-15
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जयविश्वनाथ शिव स्तुति:-पशूनां पतिं पापनाशं परेशं गजेन्द्रस्य कृत्तिं वसानं वरेण्यम|Kashi Vishwanath
पशूनां पतिं पापनाशं परेशं,
गजेन्द्रस्य कृत्तिं वसानं वरेण्यम् ।
जटाजूटमध्ये स्फुरद्गाङ्गवारिं,
महादेवमेकं स्मरामि स्मरारिम् ॥
महेशं सुरेशं सुरारातिनाशं,
विभुं विश्र्वनाथम् विभूत्यङ्गभूषम् ।
विरुपाक्षमिन्द्वर्कवह्निनेत्रं,
सदानन्दमीडे प्रभुं पञ्चवक्त्रम् ॥
गिरीशं गणेशं गले नीलवर्णं,
गवेन्द्राधिरूढम् गुणातीतरूपम् ।
भवं भास्वरं भस्मना भूषिताङ्गम्,
भवानीकलत्रं भजे पञ्चवक्त्रम् ॥
शिवाकान्त शम्भो शशाङ्कार्धमौले,
महेशान शूलिन् जटाजूटधारिन् ।
त्वमेको जगद्व्यापको विश्र्वरूप:,
प्रसीद प्रसीद प्रभो पूर्णरूपम् ॥
परात्मानमेकं जगद्बीजमाद्यं,
निरीहं निराकारं ओम्कारवेद्यम् ।
यतो जायते पाल्यते येन विश्र्वम्,
तमीशं भजे लीयते यत्र विश्र्वम् ॥
न भूमिर्न चापो न वह्निर्न वायु,
र्न चाकाशमास्ते न तन्द्रा न निद्रा ।
न चोष्णं न शीतं न देशो न वेषो,
न यस्यास्ति मूर्तिस्त्रिमूर्तिं तमीडे ॥
अजं शाश्र्वतम् कारणं कारणानां,
शिवं केवलं भासकं भासकानाम् ।
तुरीयं तमः पारमाद्यन्तहीनम्,
प्रपद्ये परम् पावनं द्वैतहीनम् ॥
नमस्ते नमस्ते विभो विश्र्वमूर्ते,
नमस्ते नमस्ते चिदानन्दमूर्ते ।
नमस्ते नमस्ते तपोयोगगम्य,
नमस्ते नमस्ते श्रुतिज्ञानगम्य ॥
प्रभो शूलपाणे विभो,
विश्र्वनाथ-महादेव शम्भो महेश त्रिनेत्र ।
शिवाकन्त शान्त स्मरारे पुरारे,
त्वदन्यो वरेण्यो न मान्यो न गण्यः ॥
शम्भो महेश करुणामय शूलपाणे,
गौरीपते पशुपते पशुपाशनाशिन् ।
काशीपते करुणया जगदेतदेक,
स्त्वं हंसि पासि विदधासि महेश्र्वरोऽसि ॥
त्वत्तो जगद्भवति देव भव स्मरारे,
त्वय्येव तिष्ठति जगन्मृड विश्र्वनाथ ।
त्वय्येव गच्छति लयं जगदेतदीश,
लिङ्गात्मके हर चराचरविश्र्वरूपिन् ॥
श्री शङ्कराचार्य कृतं!
काशी विश्वनाथ: आध्यात्मिक नगरी का हृदय
काशी विश्वनाथ मंदिर, जिसे गोल्डन टेम्पल भी कहते हैं, भारत के प्राचीनतम और पवित्रतम मंदिरों में से एक है। यह मंदिर भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक है, जो उत्तर प्रदेश के वाराणसी शहर में गंगा नदी के किनारे स्थित है।
मंदिर की प्रमुख विशेषताएं
ऐतिहासिक महत्व: इस मंदिर का इतिहास कई सदियों पुराना है। इसे कई बार तोड़ा गया और फिर से बनाया गया। वर्तमान संरचना का निर्माण 1780 में महारानी अहिल्याबाई होल्कर ने करवाया था।
स्वर्ण गुंबद: मंदिर की सबसे बड़ी खासियत इसकी दो गुंबदें हैं, जिन्हें 1835 में महाराजा रणजीत सिंह ने सोने से बनवाया था। यही कारण है कि इसे स्वर्ण मंदिर के नाम से भी जाना जाता है।
गंगा से सीधा जुड़ाव: हाल ही में बने काशी विश्वनाथ कॉरिडोर ने मंदिर को सीधे गंगा घाट से जोड़ दिया है, जिससे श्रद्धालुओं को दर्शन करने में बहुत आसानी हुई है।
ज्ञानवापी कुआं: मंदिर परिसर में एक ज्ञानवापी नामक कुआं भी है, जिसके बारे में कहा जाता है कि मुगल आक्रमण के समय ज्योतिर्लिंग को इसी कुएं में छिपाया गया था।
क्यों जाएँ?
काशी विश्वनाथ मंदिर सिर्फ एक धार्मिक स्थल नहीं है, बल्कि यह आस्था, संस्कृति और इतिहास का संगम है। यहां की सुबह की आरती और शाम की गंगा आरती भक्तों को एक अद्वितीय आध्यात्मिक अनुभव प्रदान करती हैं।
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