चौमास का पारंपरिक लोकगीत- चांचरी || Chaumas Ka Lokgeet || Upreti Sisters
Автор: Upreti Sisters
Загружено: 2025-07-23
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चौमास का पारंपरिक लोकगीत- चांचरी
चौमास का लोकगीत- चौमासी बाटो चिफलो कैं सुआ रड़ि पड़ली।
उत्तराखंड के कुमाऊँ क्षेत्र का पारम्परिक लोकगीत चाँचरी। चौमास जिसे चातुर्मास और सावन भी कहा जाता है, जब चहुँ ओर बरसात ही बरसात होती है, प्रकृति हरियाली की चादर ओढ़े अनुपम सौंदर्य से सजी होती है। तालाब, झरने, गाड़-गधेरे पानी से लबालब भरे होते हैं, नदियाँ अपने प्रचंड वेग में बहती हुई अपने गंतव्य की ओर निरंतर बहती रहती है। प्रकृति में चारों और पानी के स्रोत फूट पड़ते हैं। रास्तों में जल ही जल भरा होता है।
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#लोकगीत- चौमासी बाटो चिफलो कैं सुआ रड़ी पड़ली।
चतुर्मास/चौमास/सावन में गाँव के लोग/ उस लोक में रहने वाले लोकवासी एक दूसरे से अपने लोकगीतों/क्षेत्रीय भाषाओं के गीतों के माध्यम से वार्तालाप करते हुवे कहते हैं कि- चौमास में बाटो चिफलो हैरो, बाटा घाटान में भालिकै हिटै, गाड़- गध्यारान औंली ऐरे, घास काटन भलिकै जाये ( सावन में रास्ते फिसलन वाले हो जाते हैं, अच्छी तरह जाना कहीं तू फिसल जायेगी, गाड़- गधेरों में मटमैला पानी उफान पर है तो घास काटने आराम से जाना।
लोक तो सदा से ही प्रकृति के हर कदम में सहभागी बनकर साथ साथ चला है, लोकवासियों ने बारहमास में हर ऋतु, हर लोक उत्सव, हर पर्व का स्वागत हर्षोल्लास के साथ किया है और करते हैं। लोकगीत लोक की पहचान होते हैं, चौमास में धान/मडुवे की नेलाई ( धान/मडुवे के खेत में उगी हुई घास को काटकर पशुओं के लिये चारा निकालना) की जाती है। गाँवों की स्त्रियाँ हाथ में आँसी ( दराती) लेकर खेतों में घास काटने जाती हैं, चारों ओर बरसात से बाट-घाटों में (रास्तों में ) फिसलन होती है, गाड़-गधेरे उफान में होते हैं।
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