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पूर्व जन्म में कौन था रावण? जानिए किस श्राप के कारण राक्षस योनि में 3 बार लेना पड़ा जन्म ?

Автор: Dinesh Kumar

Загружено: 2024-04-15

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दशहरा यानी विजयादशमी हिंदू धर्म के प्रमुख त्योहारों में से एक है। इस साल दशहरा 05 अक्टूबर को मनाया जा रहा है। पूरे भारत में ये पर्व बड़े ही धूम-धाम से मनाया जाता है। हर साल अश्विन माह में शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि को दशहरा का पर्व मनाया जाता है। पौराणिक मान्यता के अनुसार, त्रेतायुग में इसी दिन प्रभु श्री राम ने लंकापति रावण का वध किया था और माता सीता को उसके चंगुल से आजाद किया था। तभी से ये पर्व बुराई पर अच्छाई की जीत के पर्व के रूप में मनाया जाता है। रावण के बारे में कहा जाता है कि वह बहुत ज्ञानी व्यक्ति था, लेकिन उसके अहंकार की वजह से उसका अंत हुआ। रावण के एक जन्म के बारे में तो कहा जाता है कि लंका में वह राक्षसों का राजा था। रामायण में भी इसका बखूबी जिक्र मिलता है। लेकिन कुछ साक्ष्यों के अनुसार, अपने पिछले जन्म में रावण राक्षस नहीं था। मान्यताओं के अनुसार चलिए जानते हैं रावण के पूर्व जन्मों के बारे में...
पूर्व जन्म में कौन था रावण? जानिए किस श्राप के कारण 3 बार लेना पड़ा जन्म
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, जय-विजय नाम के दो द्वारपाल हमेशा बैकुंठ के द्वार पर खड़े रहकर भगवान विष्णु की सेवा करते थे। एक बार सनकादि मुनि श्री हरि विष्णु के दर्शन करने आए, लेकिन उन्हें जय-विजय ने रोक लिया। इस बात से क्रोधित होकर सनकादि मुनि ने उन्हें राक्षस योनी में जन्म लेने का श्राप दे दिया। तभी विष्णु जी वहां आ गए और उन्होंने जय-विजय को श्राप मुक्त करने की प्रार्थना की। तब सनकादि मुनि ने कहा कि “इनके कारण आपके दर्शन करने में मुझे 3 क्षण की देरी हुई है, इसलिए ये तीन जन्मों तक राक्षस योनि में जन्म लेंगे और तीनों ही जन्म में इनका अंत स्वयं भगवान श्रीहरि करेंगे।”
पूर्व जन्म में कौन था रावण? जानिए किस श्राप के कारण 3 बार लेना पड़ा जन्म
इसके बाद जय-विजय अपने पहले जन्म में हिरण्यकश्यप व हिरण्याक्ष नाम के दैत्य बने। कहा जाता है कि हिरण्याक्ष ने एक बार धरती को ले जाकर समुद्र में छिपा दिया था, तब भगवान विष्णु ने वराह अवतार लेकर उसका वध किया और धरती को पुनः: अपने स्थान पर स्थापित कर दिया। अपने भाई की मृत्यु से हिरण्यकशिपु को बहुत क्रोध आया और ब्रह्मदेव से कई तरह के वरदान पाकर वह स्वयं को अमर समझने लगा। तब भगवान विष्णु ने नरसिंह अवतार लेकर हिरण्यकश्यप का भी वध कर दिया।
फिर जय-विजय अपने दूसरे जन्म में रावण और कुंभकर्ण बने। इस जन्म में रावण लंका का राजा था। वहीं कुंभकर्ण का शरीर इतना विशाल था कि कई हजारों लोगों को भोजन पलक झपकते ही चट कर जाता है। तब भगवान विष्णु ने 7वें अवतार में अयोध्या के राजा दशरथ के यहां श्री राम के रूप में जन्म लिया। फिर रावण और कुंभकर्ण का वध किया।
कुछ साक्ष्यों के अनुसार, तीसरे जन्म में जय-विजय यानी रावण और कुंभकर्ण शिशुपाल व दंतवक्र के रूप में जन्मे। कहा जाता है कि शिशुपाल और दंतवक्र दोनों ही भगवान श्रीकृष्ण की बुआ के पुत्र थे, लेकिन वे फिर भी उनसे बैर रखते थे। इनकी बुराइयों के चलते इस जन्म में श्रीहरि के अवतार भगवान श्रीकृष्ण ने इनका वध किया।

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