जुबिन गर्ग समाधि स्थल सोनापुर गुवाहाटी असम || Zubeen Garg Samaadhi Shatal Sonapur Guwahati Assam
Автор: ASHUTOSH KUMAR ANWAL
Загружено: 2025-12-22
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जुबिन गर्ग
यह वो नाम है जो असम के हर दिल में बसता है, जिसे असमवासी अपने घर का सदस्य मानते हैं। असम के लोगों के लिए यह नाम किसी गायक का नहीं है, बल्कि अपने परिवार के एक सदस्य का है, जिसके जाने से मानो असम ठहर सा गया। असम की मुस्कान को किसी ने छीन लिया।
जुबिन के शोक सभा में उमड़ी 15 लाख लोगों की भीड़ बिना एक शब्द कहे एक युग के खत्म होने की कहानी लिख गयी।
उत्तर भारत के लोग शायद "या अली" तक ही जानते होंगे, लेकिन जुबिन को समझने के लिए "मायाबिनी" तक जाना होगा।
तथाकथित हमारी राष्ट्रीय मीडिया ने तो देहांत के तीन दिन तक इस तरफ ध्यान ही नहीं दिया, लेकिन जब लोगों की हूजूम ने भरी बारिश में रात भर जागकर अपने जुबिन दा का दर्शन करने पहुंची, तो उस मीडिया ने बुलेटिन में थोड़ा सा जगह दे दिया। जब इस मामले में रहस्यमयी तरीके से मौत की खबरें आने लगी, तो मीडिया ने इस वजह से उनका खबर चलाया कि कहीं से मसाला मिल जाए, किसी लड़की का एंगल हो। जब वह भी नहीं मिला, तो मीडिया ने इसे ठंडे बस्ते में डाल दिया। क्योंकि मीडिया के लिए कलाकार मतलब बालीवुड है।
अब आते हैं बालीवुड पर
बालीवुड के लोगों ने जुबिन को क्षेत्रीय कलाकार समझकर कोई भावना व्यक्त नहीं की। ये वही लोग हैं जो हर मुद्दे पर अपनी बात मुखरता से रखने और लोगों से सभी का सम्मान करने की बात करते हैं।
शायद बालीवुड को सोचना चाहिए कि उसमें जितने लोग काम करते हैं, क्या अगर वह मुम्बई छोड़कर अपने गृहनगर लौट जायें, तो उनके खाने के लाले पड़ जाएंगे। जबकि जुबिन अपने क्षेत्र में अपने लोगों के बीच रहकर इतनी ऊंचाई तक पहुंचे और असमिया संगीत को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर एक पहचान दिलाई। क्या बालीवुड का बड़ा से बड़ा कलाकार यह कर सकता है। जबाब है नहीं
तो फिर हम कह सकते हैं कि वो लोग भी मजदूरी ही कर रहे हैं। अपने लोगों से दूर दो वक्त की रोटी की तलाश में बालीवुड में तंबू लगाकर बैठे हैं। ऐसे लोग एक सच्चे कलाकार की कद्र कर सकते हैं क्या।
आज जुबिन दा को हमारे बीच से गये एक माह से ऊपर हो गया, लेकिन लोगों की भीड़ जो उन्हें श्रद्धांजलि देने आ रही है। यह बताने के लिए काफी है कि वह क्या थे।
जब भी किसी को पैसे की जरूरत हुआ बिना गिने देने वाले वो जुबिन थे।
बाढ़ में जब सरकार मदद के लिए नहीं पहुंच पाई वहां अग्रिम मोर्चे पर खड़ा होकर मदद करने वाले वो जुबिन थे।
कोरोना के समय अपने घर को कोरोना सेंटर बनाने वाले वो जुबिन थे।
हर दिन दरवाजे पर आये व्यक्ति को खिलायें बिना नहीं जाने देने वाले वो जुबिन थे।
जनता की आवाज बनकर सीएए के खिलाफ बोलने वाले वो जुबिन थे।
कितनी बातें लिखें। असम में हर व्यक्ति के साथ उनकी एक कहानी है।
जिनके लिए असम जैसे राज्य में धर्म की दीवारें टूट गई, वो जुबिन थे।
आप भी थोड़ा मेहनत कीजिए और यूट्यूब पर सर्च कीजिए जुबिन गर्ग
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धन्यवाद
जय जुबिन दा।
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