ज़िन्दगी एक खुली क़िताब, है कदम-कदम का आलम
Автор: Nai Qalam Naya Kalam Official
Загружено: 2025-10-27
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दर पे बुला ले मेरे मौला, तेरी रहमत का सहारा है...
रहबर का साया सर पर रख दे, यही मेरी पुकारा है...
तेरे फ़ैज़ से सजती रूहें, तेरे नूर से दमकती रगें...
जो झुक जाए तेरे दर पर, वही बन जाता सितारा है...
ज़िन्दगी एक खुली क़िताब, है कदम-कदम का आलम,
उसमें छुपा है दर्द-ए-हक़ीक़त, रहमत-ओ-करम का आलम।
तेरा दर ही आसरा है-आ-आ-आ…
तेरी रहमत पासरा है-आ-आ-आ…
हर सफ़े पर इश्क़ की महक है, हर सदी का सनम का आलम,
नाम-ओ-निशाँ सब मिट जाए पर बाकी रक़सम का आलम।
कोरे काग़ज़ पर अब भी उतरे, क़ुदरत का परचम का आलम,
जो लिख दे बस एक नज़र में, सरपरस्ती-ए-दम का आलम।
सजदा बन जाए सांस-सांस, दिल हो ज़िक्र-ए-चश्म का आलम,
सीना बन जाए एक हरम, और रूह में क़सम का आलम।
जो खो जाए फ़ना के अंदर, वो पाता है सनम का आलम,
आँख बंद हो और परवाज़ में, लगता है क़सम का आलम।
हर लम्हा है दरगाह तेरी, तुझ बिन सूना हर दम का आलम,
तेरी साँसों से साँस जुड़े तो, रूह में नरम-नरम का आलम।
तेरे दर पे झुक कर ऐ मालिक, बन जाए करम का आलम,
'फ़क़ीरा' तेरे नूर से मिल कर पाए सनम का आलम।
✍🏼'पागल फ़क़ीरा'✍🏼
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