"बेटों ने छोड़ा… गाँव ने संभाला"
Автор: hindistory
Загружено: 2025-11-24
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गाँव भवानीपुर में रहने वाले रघुनाथ काका की यह कहानी सिर्फ एक बूढ़े पिता की नहीं…
यह कहानी है रिश्तों की, सच की और दर्द की।
काका के बच्चे शहर में बड़े अफ़सर बन गए,
लेकिन उन्होंने अपने बूढ़े बाप को भूल जाना ही आसान समझा।
जन्मदिन पर काका ने चार थालियाँ सजाईं,
मिट्टी के दीये जलाए,
मलइया तक बनाई…
बस अपने बच्चों का इंतज़ार था।
लेकिन पूरा दिन गुज़र गया—
ना कोई आया, ना फोन तक किया।
अगले दिन हरि काका शहर से खबर लेकर आए—
“रघुनाथ… तेरे बच्चे अब गाँव नहीं आएँगे।”
यह सुनकर काका अंदर से टूट गए,
लेकिन रोए नहीं…
टूटकर भी मुस्कुराए।
अगली सुबह काका ने अपने घर के बाहर लिखा—
“प्यारे गाँव वालों के लिए दावत –
रिश्ते खून से नहीं, दिल से बनते हैं।”
पूरा गाँव उमड़ पड़ा।
हर बच्चा, हर औरत, हर बूढ़ा—सब काका का परिवार बन गए।
काका ने अपने हाथ से खाना परोसा और कहा—
“अपने वो नहीं जो खून से जुड़े हों…
अपने वो हैं जो दुख में साथ खड़े हों।”
उस रात काका ने
बच्चों की पुरानी यादें एक थैले में भरकर
कुएँ के पास रख दीं।
और बोले—
“कुछ लोग यादों में रहने के लायक नहीं होते…
गाँव मेरा है,
लोग मेरे हैं…
जिंदगी अब इन्हीं के साथ है।”
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🎬 इस कहानी से आपको क्या सीखने को मिलेगा?
बुज़ुर्गों को कभी अकेला मत छोड़ो
असली रिश्ते वही हैं जो साथ निभाएँ
गाँव का प्यार शहर की दौलत से बड़ा है
इंसान की इज्ज़त उसके दिल में होती है, उम्र में नहीं
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