Ep78: Jain Darshan: Sach Ko Kaise Dekhen | Satya Ko Kaise Samjhen Aur Joden? | Jinvani Shorts
Автор: JINVANI SHORTS 🇮🇳
Загружено: 2025-12-21
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जय जिनेन्द्र 🙏
आपका स्वागत है हमारी श्रृंखला
“Jain Darshan: Sach Ko Kaise Dekhen?”
के EP 78 में — जहाँ हम
“सत्य को कैसे समझें और जोड़ें?”
इस गहरे और सूक्ष्म प्रश्न को
जैन दर्शन के आधार पर
शांत और व्यवहारिक ढंग से समझने की कोशिश कर रहे हैं।
पिछले भाग (EP 77) में हमने
“सत्य को कैसे देखें?”
इस विषय पर विचार किया था —
कैसे सत्य एक ही दृष्टि से पूरा प्रकट नहीं होता,
और कैसे
काल, क्षेत्र, अवस्था और ज्ञान-सीमा
सत्य के बोध को प्रभावित करते हैं।
हमने यह भी समझने का प्रयास किया था कि
आंशिक सत्य और पूर्ण सत्य में क्या अंतर है
और निर्णय से पहले
समझ को पक्का करना क्यों आवश्यक है।
अब यहाँ एक और गहरा प्रश्न सामने आता है—
यदि हर दृष्टि
सत्य का केवल एक अंश ही दिखाती है,
तो फिर
इन सभी आंशिक सत्यों के साथ
हम कैसे आगे बढ़ें?
क्या किसी एक दृष्टि को अंतिम मान लेना
सही समझ कहलाएगा?
या फिर
सत्य को समझने के लिए
इन सभी पक्षों को
आपस में जोड़ना आवश्यक है?
इसी दिशा में, इस भाग (EP 78) में
हम समझने की कोशिश करेंगे:
• जैन दर्शन में “सत्य को समझना” और “सत्य को जोड़ना” क्या अर्थ रखता है
• केवल एक नय को अंतिम मान लेने से क्या दार्शनिक समस्या उत्पन्न होती है
• नय-विरोध और नय-समन्वय में क्या अंतर है
• स्याद्वाद आंशिक सत्यों को जोड़ने में कैसे सहायता करता है
• निश्चय-नय और व्यवहार-नय को साथ-साथ समझना क्यों आवश्यक है
• और संतुलित निष्कर्ष किसे कहा जाता है
जो बहुमत या जल्दबाज़ी वाले निर्णय से अलग होता है
इस एपिसोड में आप जानेंगे —
Chapters —
00:00 Intro
[01:30] आज का मिशन (सत्य को जोड़ना):
[02:23] देखना vs समझना:
[05:02] टॉर्च और कमरा: नय एक टॉर्च की तरह है जो कमरे के एक हिस्से को दिखाता है; उसे ही पूरा कमरा मान लेना विवाद का कारण है।
[06:59] नय की समस्या:
[09:51] नय विरोध vs समन्वय:
[10:40] स्यादवाद (जोड़ने का उपकरण):
[12:44] एकांगी दृष्टि की 3 भ्रांतियाँ:
[16:02] 'स्यात' का सही अर्थ:
[18:28] निश्चय और व्यवहार का मेल:
[21:21] सावधानियाँ:
[24:07] संतुलित निष्कर्ष: यह
[26:10] व्यक्तिगत लाभ:
[30:01] जय जिनेंद्र जी 🙏 🙏 🙏 धन्यवाद।
📚 शोध व स्रोत (Research & References):
इस एपिसोड में दी गई सारी जानकारी केवल
Jain Shastras और आचार्य-ग्रंथों पर आधारित है।
किसी भी बाहरी या आधुनिक ग्रंथ का उपयोग नहीं किया गया है।
👉 मुख्य संदर्भ ग्रंथ:
इस भाग की सारी जानकारी इन चार जैन ग्रन्थों पर आधारित है:
१) तत्त्वार्थसूत्र — आचार्य उमास्वामी
२) आप्तमीमांसा — आचार्य समन्तभद्र
३) नय-साहित्य / नय-ग्रंथ (परम्परागत नय परम्परा)
४) प्रवचनसार — आचार्य कुंदकुंद
इन्हीं आधारों पर हमने
सत्य-समन्वय, नय-दृष्टि,
स्याद्वाद, संतुलित निष्कर्ष
और व्यवहारिक विवेक
जैसी बातों को
सरल भाषा में समझने का प्रयास किया है।
🎧 Podcast Series Info:
श्रृंखला / Podcast : Jain Darshan: Sach Ko Kaise Dekhen?
भाग: 9 (EP 78)
🔹 Presented by : Rushabh Jain & Jinvani Shorts
🔹 Research & Script: Based on तत्त्वार्थसूत्र, आप्तमीमांसा, नय-साहित्य, प्रवचनसार
🔸 Narration: AI Voice (Directed by Rushabh Jain)
🔸 Editing by: Rushabh Jain
✅ 100% Original content researched, written & produced by our team.
📅 नया भाग हर 2 दिन में जारी किया जाएगा।
इसलिए चैनल से जुड़े रहें
हर नए अध्याय के साथ।
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👉 Next Episode Reminder (Part 10):
आप हमारे अगले भाग —
“जीवन में अनेकांत का प्रयोग” (EP 79)
में अवश्य जुड़ें।
इसमें हम यह समझने का प्रयास करेंगे कि
अनेकांत का सिद्धांत
दैनिक जीवन, संवाद, मतभेद
और व्यवहारिक निर्णयों में
कैसे उपयोगी बनता है।
यह वीडियो हमारी स्वयं की अध्ययन-प्रक्रिया पर आधारित है।
सभी शोध, लेखन और सामग्री का संकलन
हमने अपने प्रयास से किया है।
हम अभी सीखने की कोशिश कर रहे हैं
और जैन दर्शन को
सरल भाषा में समझने का प्रयास कर रहे हैं।
जय जिनेन्द्र 🙏
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