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गुरुदेव सियाग की पावन वाणी से - 04 मई 2006 - बीकानेर - भाग 06

Автор: Guru Siyag Divine

Загружено: 2025-09-02

Просмотров: 304

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तो इस लिए, इस नाम जप और ध्यान से सारे सारीरिक रोग खतम, मानसिक रोग खतम, और नशों से भी छुट्टी हो जाती है । और नशे छूटने, नशे छूटने में तो आश्चर्य विज्ञान जो कर रहा है कि अफीम छूट गया, ठीक है छूट गया । अब तो कह नहीं सकते नहीं छूटता, हजारों का छूट गया । अब वो ये कहते हैं गुरुजी, बीस साल से खा रहा था तो आफ्टर अफेक्ट्स कहाँ गए ? आफ्टर अफेक्ट्स क्या हुआ ? वो क्या हुआ ? मैंने कहा, भई, मैं आपकी इस बात को नहीं मानता, आफ्टर अफेक्ट्स । मैंने उनको कहा जी मान लो, उदाहरण के लिए, मैं अफीम खाता हूँ, सुबह खाया, और फिर काम में लग गया, वो शाम को नशा उतर गया तो फिर माँग हुई, नशे की अंदर । डिमांड हुई । तो खाना पड़ा । तो आप उसको, उस डिमांड को आपकी साइंस खतम नहीं कर सकती । वृत्ति नहीं बदल सकती । तत्त्व में परिवर्तन ला सकती नहीं है । वृत्ति क्या होती, आपकी साइंस की पकड़ में नहीं आता । मैंने कहा, इस नाम जप और ध्यान से वृत्ति बदल जाती है । आदमी सतोगुणी हो जाता है । फिर वो, उस चीज से घृणा हो जाती है, अंदर से घृणा हो जाती है । बदबू आने लग जाती है, जिसकी सुगंध आती थी । तो, इस प्रकार वो नशा छूट जाता है साधक का । साधक नहीं छोड़ता । कई दफ़े, मैं, कित्ते लोग कहते हैं जी मत पियो, संत-महात्मा कहते हैं ना । कोई सुनता है क्या ? फिर मेरे वाली कौन सुने ? मैं कहता हूँ मत छोड़ो, है हिम्मत, तो आ जाओ मैदान में । मत छोड़ो । मगर नाम को भी मत छोड़ो । सब्जेक्ट – नाम नहीं जपोगे तो, नशा नहीं छोड़ेगा । और नाम जपोगे, तो नशा पड़ोसी के नहीं रहेगा ।
इस प्रकार, इस आराधना से, कोई डरने की जरूरत नहीं है, एड्स, कैंसर के पैशन्ट को । नाम जपोगे, नहीं मरोगे । यहाँ तक ऑपनली आ के ये बात कहणे देता क्या कोई ? अगर ये गलत होती । हैं ? ये सबसे बड़ा क्राइम है ! समझे नहीं समझे ?
तो, ये एक आराधना का तरीका बताया मैंने । अब, ये तो इस जीवन में तो, आ गया न सुधार, अब अगले की भी सोच लो । कोई भी धरम, पीछे पीछे की कर रहा है । कहाँ जा रहे हो, ये नहीं पता चलता । हमारा योग बताता है कहाँ जा रहे हो । समझे नहीं समझे ? आप ध्यान के दौरान, अनलिमिटेड काल के भूत-भविष्य को देखोगे सुनोगे, ध्यान के दौरान । इस आँख (तीसरे नेत्र से) से देखोगे । समझे नहीं समझे ?
और जो देखोगे, वो सत्य होगी । विज्ञान बहुत परेशान है । तो मैं, मैंने तो कहा, ये हमारे योग दर्शन की बात है । पातंजलि योग दर्शन में, अब पातंजलि योग दर्शन का बड़ा हल्ला है । उसमें एक, उस, उस, पातंजलि योग दर्शन के अनुसार, जब आदमी, प्रातिभ ज्ञान प्राप्त कर लेता है, एक ज्ञान का नाम है, प्रातिभ ज्ञान । तो उससे, उसको छह प्रकार की सिद्धि होती है । उसमें पहली सिद्धि है कि वो आदमी, साधक, अनलिमिटेड पास्ट-फ्यूचर को देख सुन सकता है । छिपाई हुई, ढकी हुई चीज को देख सकता है । ये प्रातिभ ज्ञान की बात है । औ, मेरे हजारों शिष्य देख रहे हैं, एक नहीं । हजारों देख रहे हैं, ध्यान के दौरान देख रहे हैं । तो इस प्रकार, अगर आपने, आपको कोई, आपणे अपने परिचितों की मौत दिख गई, क्योंकि आया है उसको जाना है । और 10, 20, 30 वैसे ही मरते गए, जैसे दिखी, तो अगर ख्याल आ गया, तूँ कौन सा अमर रहेगा । दिख जाएगा, जीते जी मृत्यु से साक्षात्कार हो जाएगा आपका । ये, दिव्य विज्ञान है हमारे दर्शन का । इसी को चैलेंज करके, मैंने भारत, विश्व में निकला हूँ । तो फिर, डर जाओगे । मौत दिखी, डर गए ! और फिर भगवान को याद करोगे, खोटे-खरे तो कर लिए भगवान, फिर नहीं करूंगा, माफ कर दे । बस, आँख बंद करके, यहाँ (आज्ञाचक्र पर) देखा, पलक पलटते ही सामने आ गया, यहीं तो बैठा है, कहीं बाहर है ई नहीं, भ्रम में भटक रहे हो, यहाँ (सहस्रार में) बैठा है, यहाँ बैठा है, पलटते ही सामने आ जाएगा । मैं कह्या आने-जाणे की छुट्टी । जन्म-मरण के साइकिल से छुट्टी । मतलब, ये क्रियात्मक योग है । समझे नहीं समझे ? उदाहरण दिया कबीर ने एक बार, बताऊँ आपको मैं ! एक मट्टी का घड़ा है, कबीर कहता है, एक मट्टी का घड़ा है, उसमें पाणी है । भरा हुआ है । और पाणी में रख दो । तो कहता है, “जल विच कुम्भ, कुम्भ विच जल है, बाहर भीतर पाणी”, फिर कहता है “विघटा कुम्भ, जल जल ही समाना, ये गति विरले ने जाणी” । कह, घड़ा गल गया तो, फूट गया तो, विघटन हो गया उसका तो ? फिर बाहर वाला पाणी, अंदर वाला पाणी, में कोई भेद नहीं है ना ?

सारे साथ में हैं तो एक दूसरे को बता दो, कोई बात ही नहीं है । मगर जो दीक्षित नहीं है, मतलब इरादतन, फायदा हो जाएगा, चलो । इस ढंग से कोई, इस, नहीं करना, नहीं तो, आपको भी रिजल्ट नहीं मिलेगा, सामने वाले को नहीं मिलेगा । वो जो नाम बताऊँ, वो बताना नहीं, बाकी जो कुछ हो रहा है दुनिया को बताओ । समझे ना ? नोट: गुरुदेव ने ये पाबंदी 30 जुलाई 2009 को सभी साधकों पर से हटा ली है । अब आप ये मंत्र किसी को भी बता सकते हो ।
तो, ये एक, उसमें, गुरु की मर्यादा लगाई हुई है, ये तो इतना भारी रहस्य है कि मैं नहीं समझ पा रहा इसको, क्या है कारण, मैं नहीं जानता । हाँ, अरविन्द ने भी स्वीकार किया है, कि ये (मंत्र) सीक्रेट होणा चाहिए । और फिर, उसको भी माना है कि गुरु, चेतन गुरु द्वारा दिया हुआ होणा चाहिए । किताब से लिया हुआ नहीं होणा चाहिए । नोट: गुरुदेव ने ये पाबंदी 30 जुलाई 2009 को सभी साधकों पर से हटा ली है । अब आप ये मंत्र किसी को भी बता सकते हो ।
तो इस प्रकार, ये, आप जो, आपको नाम बताऊँ, उससे आपको परिवर्तन होगा । अब नाम, पेपर में ये है, लिखा हुआ है । एक बीज मंत्र है, राधा है पृथ्वी तत्त्व, और आकाश तत्त्व कृष्ण तत्त्व है । तो इस आराधना में, भोग और मोक्ष दोनों साथ चलते हैं, ये गीता वाला निष्काम कर्म योग है । समझे ना ? दूसरी आरधनाएं, जो हैं, भोग है तो मोक्ष नहीं, मोक्ष है तो भोग नहीं । तो ये गीता वाला निष्काम कर्म योग है । तो इसमें दोनों तत्त्व शामिल हैं । दूसरे प्रदेश से आए हुए हैं, वो वहाँ की अपनी स्थानीय भाषा में प्रचार करो भाई । एक आदमी का जीवन बचे, कितना बड़ा पुण्य है !

गुरुदेव सियाग की पावन वाणी से - 04 मई 2006 - बीकानेर - भाग 06

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