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Автор: Baal Br. Pt. Sumat Prakash Ji

Загружено: 2025-12-07

Просмотров: 4282

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”श्री 1008 पार्श्वनाथ लघु प्राण प्रतिष्ठा समारंभ, सम्मेदशिखरजी मधुवन (झारखंड)”

जब तीर्थंकर को वैराग्य आता है तब अनुमोदना करने स्वर्ग से लौकांतिक देव आते हैं, और कहते हैं -

अब जिनदीक्षा लेना चाहिए, निज आराधन करना चाहिए ।।टेक।।
जीवन का है नहीं ठिकाना, यहाँ से कब हो जावे जाना।
अब विलम्ब नहीं करना चाहिए।। अब ... ।।1।।
है स्वाधीन सु बाह्य व्यवस्था, कर्मोदय की अति विचित्रता।
लखकर समता धरना चाहिए।। अब ... ।। 2।।
जीव स्वयं ही सुख-दुःख भरता, कोई किसी का कुछ नहीं करता।
ज्ञाता-दृष्टा रहना चाहिए।। अब ... ।। 3।।
सुख का कारण नहीं परिग्रह, परिग्रह से तो होते विग्रह।
अब निर्ग्रन्थ सु-रहना चाहिए।। अब ... ।। 4।।
मिथ्या पर में निज संकल्प, अरे निरर्थक सर्व विकल्प।
नित निर्द्वन्द्व सु-रहना चाहिए।। अब ... ।। 5।।
इच्छाओं की पूर्ति असम्भव, अक्षय सुख निज में ही सम्भव।
निर्वांछक ही रहना चाहिए।। अब ... ।। 6।।
त्याग कुसंग महादुखकारी, होवें निश्चय शिवमगचारी।
सहज असंग ही रहना चाहिए।। अब ... ।। 7।।
सब प्रकार अवसर है आया, मन में यही भाव उमगाया।
सहज समाधि धरना चाहिए।। अब ... ।। 8।।

—————

रचिता- श्रद्धेय ब्र. रवीन्द्रजी ‘आत्मन्’
स्वर- स्वयं जैन, सीहोर
सह स्वर - वंदना पारख, राजनन्दगाँव
स्टूडियो - विलास स्टूडियो राजनंदगाँव [email protected]

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