हॉली Vlog स्पेशल 2023 हर्षनाथ पर्वत।स्पेशल होली / पहाड़ों के बीच होली
Автор: Dilraj Kumawat
Загружено: 2023-03-08
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#हर्षपर्वत की ऊंचाई :
आकड़ों के अनुसार इस पर्वत की ऊंचाई 900 m (2,953 ft) है। हालाँकि इसके लिए आपको पैदल चलने की ज़रुरत नही है हाल ही में यहाँ पर एक अच्छी खासी सड़क का निर्माण किया जा चूका है जो दर्शन करने वालों के लिए काफी फायदेमंद साबित होगी।
हर्षनाथ मन्दिर किसने बनवाया :
हर्षनाथ मंदिर (harshnath temple history in hindi) का निर्माण 973 ई0 में करवाया गया था और विक्रम संवत के अनुसार 1030 में करवाया गया था। आपकी बेहतर जानकारी के लिए बता दे की हर्षनाथ मंदिर के निर्माणकर्ता शैव संत भवरक्त हैं, जो चौहान शासक विग्रहराज प्रथम के समय के थे।
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#हर्षनाथ की कथा :
इस पर्वत का नाम हर्ष एक पौराणिक घटना के कारण पड़ा। उल्लेखनीय है कि दुर्दान्त राक्षसों ने स्वर्ग से इन्द्र व अन्य देवताओं का बाहर निकाल दिया था। भगवान शिव ने इस पर्वत पर इन राक्षसों का संहार किया था।
इससे देवताओं में अपार हर्ष हुआ और उन्होंने शंकर की आराधना व स्तुति की। इस प्रकार इस पहाड़ को हर्ष पर्वत एवं भगवान शंकर को हर्षनाथ कहा जाने लगा। एक पौराणिक दन्त कथा के अनुसार हर्ष को जीणमाता का भाई माना गया है।
बताया जाता है कि एक बार जीण (jeen mata katha) अपनी भाभी के साथ सरोवर से जल लेने गई थी और जल लेते समय भाभी और ननद में इस बात को लेकर नोकझोंक हो गई। बात हर्ष किसे ज्यादा प्यार करता है पर आकर पहुंची। इसपर दोनों में शर्त्त लगी कि हर्ष जिसके सिर से पानी का मटका पहले उतारेगा उसे ही हर्ष अधिक प्यार करेगा।
भाभी और ननद दोनों जब घर पहुंची लेकिन हर्ष ने पहले पानी का मटका अपनी पत्नी के सिर से उतारा और इसके बाद जीण को लगा भाई के मन में उसके प्रति प्यार कम हो गया है। वह नाराज होकर वह आरावली के काजल शिखर पर तपस्या के लिए चली गई।
नाराज जीण को मनाने हर्ष काजल शिखर गया लेकिन बहन नहीं मानी। बहन को वहां पर देख हर्ष भी पहाड़ी पर तप भैरो की तपस्या करने लगा। जीण के निर्णय की तरह हर्ष भी अटल रहा और घर नहीं लौटा। जीण जहां काजल शिखर पर बैठकर भगवती की घोर आराधना कर रही थी वहीं अब हर्ष दूसरे पहाड़ की चोटी पर भैरव की साधना में तल्लीन हो गया।
जीण के तप से प्रसन्न होकर मां दुर्गा ने इस स्थान पर जीण (jeen mata history in hindi) नाम से पूजा ग्रहण करने का वरदान दिया था। वहीं हर्षनाथ भी हर्ष शिखर पर बैठकर भैरूजी की तपस्या कर स्वयं भैरू की मूर्ति में विलीन होकर हर्षनाथ भैरव बन गए। जीण आजीवन ब्रह्मचारिणी रही और तपस्या के बल पर देवी बन गई।
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