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Автор: Travelling Satisfied
Загружено: 2025-02-28
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श्री बालाजी धाम | सालासर | राजस्थान | सालासर बालाजी धाम | हनुमान मंदिर | यात्रा | संपूर्ण यात्रा जानकारी
Official Website: https://salasarbalaji.org/
Google Maps: https://maps.app.goo.gl/wxg7DXRGHPweG...
सालासर बालाजी मंदिर भगवान हनुमान के भक्तों के लिए एक धार्मिक स्थल है। यह राजस्थान के चुरू जिले में जयपुर-बीकानेर राजमार्ग पर स्थित है। वर्ष भर में असंख्य भारतीय भक्त दर्शन के लिए सालासर धाम जाते हैं। हर वर्ष चैत्र पूर्णिमा और आश्विन पूर्णिमा पर बड़े मेलों का आयोजन किया जाता है। भारत में यह एकमात्र बालाजी का मंदिर है जिसमे बालाजी के दाढ़ी और मूँछ है। सालासर धाम में आने वाले सभी यात्रियों की सुविधा व धाम का विकास “श्री बालाजी मंदिर” के माध्यम से “श्री हनुमान सेवा समिति” द्वारा समुचित रूप से किया जाता है। यहाँ रहने के लिए कई धर्मशालाएँ और खाने-पीने के लिए कई जलपान-गृह (रेस्तराँ) हैं। श्री सालासर बालाजी मंदिर सालासर कस्बे के ठीक मध्य में स्थित है। यहाँ की मान्यता है की मात्र नारियल बांधने से बालाजी महाराज सभी इच्छाओं को पूरी करते है।
उनके कुछ प्रमुख भोग भी हैं जिन्हें अर्पित करने से श्री बालाजी महाराज अपने भक्तों की इच्छा पूर्ण करते हैं। वे भोग हैं :
बूंदी के लड्डू - बूंदी के लड्डुओं का भोग श्री बालाजी महाराज को बाल्यकाल से ही बेहद प्रिय है। अधिक्तर भक्त सवामणी में भी लड्डू का ही भोग लगाते हैं।
बाज़रे का चूरमा / सादा चूरमा - बाज़रे का चूरमे का भोग श्री बालाजी महाराज को उस किसान द्वारा श्री बालाजी महाराज को लगाया गया था जिसके खेत से उनकी मूर्ति प्रकट हुई थी। भक्तों द्वारा आज भी इन्हें बाज़रे के चूरमे का भोग लगाया जाता है।
पेड़े - पेड़ों का भोग भी श्री बालाजी महाराज को बेहद प्रिय है। केसर पेड़े का भोग श्री बालाजी महाराज को प्रिय है।
बेसन की बर्फी - बेसन के लड्डू और बेसन की बर्फी श्री बालाजी महाराज को पसंद है। भक्त बेसन की बर्फी की सवामणी भी श्री बालाजी महाराज को लगाते हैं।
संत शिरोमणी, सिद्धपुरूष, भक्त प्रवर श्री मोहनदास जी महाराज की असीम भक्ति से प्रसन्न होकर स्वयं रामदूत श्री हनुमान जी ने मूर्ति रूप में विक्रम संवत् 1811 (सन् 1755) श्रावण शुक्ला नवमी शनिवार, आसोटा ग्राम में प्रकट होकर अपने परम भक्त मोहनदास जी महाराज की मनोकामना पूर्ण की। अपने आराध्य से प्राप्त आशीर्वाद के फलस्वरूप श्री मोहनदास जी ने विक्रम संवत 1815 (सन् 1759) में सालासर में उदयराम जी द्वारा मंदिर-निर्माण करवाकर श्री उदयराम जी एवं उनके वंशजों को सेवा-पूजा का कार्य सौंपकर स्वयं जीवित समाधिस्थ हो गये।
श्री हनुमान जन्मोत्सव का उत्सव हर साल चैत्र शुक्ल चतुर्दशी और पूर्णिमा को मनाया जाता है।श्री हनुमान जन्मोत्सव के इस अवसर पर भारत के हर कोने से लाखों श्रद्धालु यहाँ पहुँचते हैं।
प्रमुख मेले - आश्विन शुक्लपक्ष चतुर्दशी और पूर्णिमा को मेलों का आयोजन किया जाता है और बड़ी संख्या में भक्त इन मेलों में भी पहुँचते हैं। भाद्रपद शुक्लपक्ष चतुर्दशी और पूर्णिमा पर आयोजित किये जाने वाले मेले भी बाकी मेलों की तरह आकर्षक होते हैं। इन अवसरों पर नि:शुल्क भोजन, मिठाईयों और पेय पदार्थों का वितरण किया जाता है।
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