Kaluram Bamniya | Ghana Din So Liyo Re Ab Tu Jaag Musafir Jag | Kabir Bhajan | KALAVYOM | कलाव्योम
Автор: KalaVyom Studio
Загружено: 2025-07-31
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कलाव्योम के मंच पर लोकचेतना की पुकार
"घणा दिन सो लियो रे, अब तू जाग मुसाफिर जाग"
पद्मश्री कालूराम बामनिया की सजीव प्रस्तुति
भारतीय लोकसंस्कृति के मूर्धन्य साधक, पद्मश्री कालूराम बामनिया ने कलाव्योम फाउंडेशन के सांस्कृतिक मंच पर जब अपनी गहरी और ओजस्वी वाणी में यह जागृति गीत प्रस्तुत किया।
"घणा दिन सो लियो रे, अब तू जाग मुसाफिर जाग",
तो यह केवल एक गीत नहीं रहा, बल्कि वह एक चेतावनी बन गया आत्मा को, एक नाद बन गया समाज को जगाने का। इस भजन के माध्यम से उन्होंने जीवन की नश्वरता, आत्मचिंतन की आवश्यकता और समय की अमूल्यता को बेहद सरल लेकिन मार्मिक शैली में दर्शकों के हृदय में उतार दिया। उनकी प्रस्तुति में राजस्थानी लोकभाषा की मिठास, भजन की भक्ति, और समाज चेतना का संदेश त्रिवेणी के रूप में बहता नजर आया।
"घणा दिन सो लियो रे, अब तू जाग मुसाफिर जाग"
श्रोताओं को जीवन की गति, उद्देश्य और आत्मिक जागरण की ओर प्रेरित करती हैं। यह गीत आध्यात्मिकता और सामाजिक जिम्मेदारी के संगम का प्रतीक है। इस अवसर पर मंच पर उपस्थित हर व्यक्ति मंत्रमुग्ध होकर न केवल गीत का रसास्वादन कर रहा था, बल्कि अपने अंतर्मन से संवाद भी कर रहा था। यह प्रस्तुति एक लोकगायक के गीत से कहीं अधिक, एक संत की वाणी की तरह अनुभव की गई।
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