विधिक प्रतिनिधि के अधिकार O 22 RULE 4 (2) CPC AND O 1 RULE 10 CPC: Vidyawati v. Man Mohan And Others
Автор: Advocate VIPUL SHARMA BAGDA
Загружено: 2025-10-11
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SLP (C) No. 9356 of 1995, decided on May 1, 1995
यह उद्धरण भारत के सर्वोच्च न्यायालय के विद्यावती बनाम मन मोहन और अन्य मामले के निर्णय से लिया गया है, जिसे 1 मई, 1995 को खारिज कर दिया गया था। इस मामले का केंद्रीय कानूनी मुद्दा यह था कि क्या एक कानूनी प्रतिनिधि (legal representative), जिसे सिविल प्रक्रिया संहिता (CPC) के आदेश 22 नियम 4 के तहत प्रतिवादी की मृत्यु के बाद लाया गया है, अपनी व्यक्तिगत क्षमता में स्वतंत्र या शत्रुतापूर्ण स्वामित्व का दावा करते हुए एक अतिरिक्त लिखित बयान दाखिल कर सकता है। न्यायालय ने स्थापित सिद्धांतों की पुष्टि की, विशेष रूप से बाल किशन बनाम ओम प्रकाश और जगदीश चंद्र चटर्जी बनाम श्री किशन के फैसलों पर भरोसा करते हुए, कि एक कानूनी प्रतिनिधि केवल वही बचाव प्रस्तुत कर सकता है जो मृतक प्रतिवादी उठा सकता था। यदि याचिकाकर्ता स्वतंत्र अधिकार का दावा करना चाहता है, तो उसे आदेश 1 नियम 10 के तहत अपनी व्यक्तिगत क्षमता में मुकदमे में शामिल होना होगा या एक अलग मुकदमा दायर करना होगा, न कि केवल मृतक के कानूनी प्रतिनिधि के रूप में।
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