“आख़िर कब तक...” — आतंक और दर्द सहना है हमें ? |
Автор: PRINCE KUMAR
Загружено: 2025-11-10
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दिल्ली मे हुए बम ब्लास्ट से मै बहुत स्तब्ध हूं, इस बम ब्लास्ट में जिनकी भी जान गई उनकी लिए मै पार्थना करना हूं, और जो अभी #hospital में #doctors कि निगरानी मे हैँ उनके जल्दी स्वस्थ होने कि कामना करता हूं🕊️
“आख़िर कब तक...” — एक गूंजती हुई पुकार है उस हर दिल की,
जो नफ़रत से नहीं, इंसानियत से दुनिया को बदलना चाहता है।
यह कविता आतंक, दर्द और उम्मीद — तीनों भावों का संगम है।
यह याद दिलाती है कि अब वक़्त है मोहब्बत की मशाल फिर से जलाने का।
🇮🇳 जय हिन्द, वंदे मातरम्! 🇮🇳
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