VTS 01 1
Автор: vikas jain
Загружено: 2014-01-07
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Tattvartha Sutra (Sanskrit) -- सप्तमो भाग: ।।
हिंसाव-तस्तेयाब्रह्मपरिग्रहेभ्यौ विरतिर्व्रतम।।
देशसर्वतोऽणुमहती।।
तत्स्थैर्याथा भावनाः पाञ्च पञ्च।।
वाङ्गमनोगुप्तीर्यादान निक्षेपण समित्यालोकितपान भोजनानि पंच।।
क्रोधलोभ भीरुत्व हास्य प्रत्याख्यानान्युवी चिभाषणं च पंच।।
शून्यागार विमोचिता वासपरोधा करण भैक्षशुद्धिसमधर्माविसंवादाः पंच।।
स्त्रीराग कथा श्रवणतन्मनोहरांग निरीक्षणपूर्व रतानुसम् रण वृष्येष्ट सरस्वशरीर संस्कार त्यागाः पंच।।
मनोज्ञामनोत्रज्ञन्द्रिय विषय रागद्वेष वर्जनानि पंच।।
हिंसादिष्वहामुत्रा पायावद्यदर्शनम्।।
दुःखमेव वा।।
मैत्रीप्रमोद कारुण्यमाध्यस्थ्यानि च सत्त्वगुणाधिक क्लिश्यमानाविनयेषु।।
जगत्कायस्व भावौ वा संवेग वैराग्यर्थम्।।
प्रमत्तयोगात्प्राणव्यपरोपणं हिंसा।।
असदभिधानमनृतम्।।
अदत्तादानं स्तेयम्।।
मैथुनमब्रह्म।।
मूर्च्छा परिग्रहः।।
निःशल्यो व्रती।।
अगार्यनगारश्च।।
अणुव्रतोऽगारी।।
दिग्देशानर्थदण्ड विरतिसामायिक प्रोष धोपवासोपभोगपरिभोगपरिमाणातिथिसंविभागव्रतसंपन्नश्च।।
मारणान्तिकीं सल्लेखना जोषिता।।
शंकाकाङक्षाविचिकत्सान्यदृष्टि प्रशंसा संस्तवाः सम्यग्दृष्टेरतीचाराः।।
व्रतशीलेषु पञ्च पञ्च यथाक्रमम्।।
बन्धवधच्छेदातिभारोपणान्नपाननिरोधाः।।
मिथ्योपदेश रहोभ्याख्यानकूटलेखक्रिया न्यासापहार साकारमन्त्र भेदाः।।
स्तेन प्रयोगतदाह्वतादान विरुद्धराज्यातिक्रमहीनाधिक मनोन्मान प्रतिरुपक व्यवहाराः।।
परविवाहक रणेत्वरिका परिगृहीता गमनानाङ्गक्रीडा कामतीव्राभिनिवेशाः।।
क्षेत्रवास्तुहिरण्य सुवर्णधन धान्य दासीदास कुप्य प्रमाणतिक्रमाः।।
ऊर्ध्वाधस्तिर्य ग्व्यतिक्रमःक्षेत्र वृद्धिस्मृत्यन्तराधानानि।।
आनयन प्रेष्य प्रयोग शव्दरुपानुपात पुद्गलक्षेपाः।।
कन्दर्पकौत्कुच्य मौखर्यासमीक्ष्याधिकरणोपभोग परिभोगानर्थक्यानि।।
योगदुष्प्रणिधानानाद रस्मृत्यनुपस्थानानि।।
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