Why Animals Kept in Zoos | Khel Khel Main For Kids | Kids Educational & Entertainment Video In Hindi
Автор: Sunil Batta Films
Загружено: 2019-12-15
Просмотров: 9078
Channel- Sunil Batta Film
Documentary - "Khel Khel Main" Series For Kids - "Why Animals Kept in Zoo"
Kids Educational & Entertainment Video In Hindi
Produced & Directed by Sunil Batta
Voice- Navneet Mishra, Camera-Chandreshwar Singh Shanti, Edit- Venkatesh, Music-Krishan Swaroop, Shooting Location- Lucknow Zoo.
Synopsis
प्यारे बच्चों, Zoo शब्द सबसे पहले London Zoological Garden के लिए इस्तेमाल हुआ था जो 1828 में साइंटिफिक स्टडी के लिए बना था जिसके दरवाजे आम जनता के लिए 1847 में खोल दिये गये थे। Zoological Garden शब्द Zoology से बना है। Zoology एक ग्रीक शब्द है Zoon और logos यानी Zoon मतलब Animal और logos माने Study। समझ गये ना Zoology का मतलब Study of Animal यानी जानवरों के बारे में देखना, जानना पढ़ना और समझना।
बच्चों लखनऊ का चिड़ियाघर जिसे लखनऊ Zoological Garden कहते हैं पहले इनका नाम प्रिंस ऑफ वेल्स के नाम से रखा गया था क्योंकि ये तोहफा लखनऊ वासियों को प्रिंस ऑफ वेल्स का ही दिया गया सुन्दर तोहफा है, इसका कुल क्षेत्रफल 71.6 एकड़ है इसीलिए आज इसे भारत के बड़े चिड़ियाघरों में शामिल किया जाता है।
बच्चों, यहां बहुत तरह-तरफ के जानवर हैं जैसे कई किस्म के हिरन, बारहसिंगे, बन्दर, भालू, भेड़िया, जेब्रा, गेंडा, दरियाई घोड़ा, जिराफ, कई तरह की चिड़िया, मोर, तोता, सांप, कई तरह की रंगीन मछलियां, चीता, और यहां जंगल का राजा शेर भी है। इनकी देखभाल करने के लिए दो Veterinary Doctor भी हैं जो इन जानवरों के स्वास्थ्य और खुराक का विशेष ध्यान रखते हैं। इस जू में प्रतिवर्ष 12 से 13 लाख दर्शक आते हैं जिनमें 40 से 50 प्रतिशत स्कूल के बच्चे होते हैं।
बच्चों, तुम सोच रहे होंगे कि आखिर जू यानि चिड़ियाघर में इस तरह से जानवरों को बन्द क्यों रखा जाता है तो इसका मुख्य कारण इन लुप्तप्राय जानवरों को बचाना और उनकी संख्या को बढ़ा कर संरक्षण देना है क्योंकि कई जानवरों की संख्या आज विश्व में चिन्ताजनक स्थिति तक कम हो गयी है, और कुछ जंगली जानवर जब किसी कारणवश नरभक्षी हो जाते हैं तो भी उनको यहां लाकर रखा जाता है। यहाँ देखने के लिए केवल जानवर ही नहीं हैं बल्कि बहुत सी और नायाब चीजें भी हैं जैसे 14 नवम्बर 1969 यानि बाल दिवस के दिन से यहाँ ट्वाय ट्रेन भी छुक-छुक कर चलने लगी हैं जिसमें दो यात्री डिब्बे भी लगे हैं और इसका सफर 1.5 किलोमीटर का है। एक बार अगर ट्रेन में बैठ जाओगे तो आराम से घूम कर सारे जानवरों को देख लोगे।
इसके अलावा 1 जनवरी, 2005 से फाइबर पैडल बोट्स से यहाँ नौका विहार भी किया जा रहा है पैडल बोट से छप-छप करते तैरने से, पैदल घूमने की सारी थकान, कुछ ही देर में दूर हो जाती है और हाँ यहां कई खूबसूरत पार्क भी हैं जहाँ रंग-बिरंगे फूल लगे हैं और एक बड़े पार्क में तो कई तरह के झूले भी लगे हैं जहाँ बच्चे खूब मौज मस्ती करते हैं। एक पार्क में एतिहासिक तोप भी रखी है जो कई लड़ाइयों के बाद अब कई दशकों से बच्चों की सवारी, खेलने और तो और लटकाने के काम भी आ रही है। यहाँ एक हवाई जहाज भी आराम फरमा रहा है क्योंकि वह कई हजार किलोमीटर का सफर तय कर अब थक चुका है।
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