Zehra Ki dua hai l Kalam - Nawaz Shahpuri Sahb, Reciter - Mohd Kaif l Anjuman Aarfi l Sultanpur 2024
Автор: ANJUMAN AARFI BAGHRA
Загружено: 2024-09-09
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Zahra Ki Duwa Anjuman Aarfi Baghra Branch (Delhi)9911657406
Lyrics
ज़ैहरा की दुआ है ये मजलिसो मातम रोके ना रूकेगा
फतवों के सितम से अशकों का ये दर्या रोके ना रूकेगा
छोड़ेगे ना हरग़िज इस ग़म को मनाना
कितना भी मुख़ालिफ हो जाए ज़माना
क़िसमत में लिखा है विर्से में मिला है ये ग़म ना छुटेगा
मातम है साअदत मातम है इबादत
ज़ैहरा का है वादा मातम की बदौलत
हर एक अज़ादार साए में अलम के जन्नत में रहेगा
ये बात सुनी है वलयों की जबानी
देता है ये मातम बुड़ो को जवानी
आएगी कभी भी उस पर ना ज़ईफी मातम जो करेगा
देता है सदा ये किरदारे ख़ुमैनी
साबित हो अमल से हम सब हैं हुसैनी
ज़ालिम को बता दो कट जाएगा ये सर लेकिन ना झुकेगा
अब्बास के बाज़ू ओ काटने वाले
अब लाखो खाड़े है परचम को सम्भाले
आ देख जहाँ में अब्बास का परचम घर घर से उठेगा
ओ मुफ्तीये बिदअत है वकत सम्भल जा
फ़िर रोज़े जज़ा तु पचताएगा वरना
फरमाने नबी है शब्बीर का दुश्मन
दोज़ख में जलेगा
खाई है क़सम ये मुख्तार ने कह कर
कुफे के सितमगर वो शाम का लश्कर
छुप जाएं जहाँ भी शब्बीर के क़ातिल कोई ना बचेगा
ख़ालिक की रिज़ा से जब आएंगे मेहदी
हर सिमत जहाँ में छा जाएंगे मेहदी
ये दिल को याकिं है फ़िर बिन्ते नबी का रोज़ा भी बनेगा
मातम की सदा से दुनिया को हिला दो
ज़ालिम को नवाज़ अब ये बात बता दो
शब्बीर के ग़म को तुम रोकोगे जितना उतना ही बड़ेगा
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