ARDHANARISHWAR - The Cosmic Balance | Lord Shiva & Shakti | Official AI Music Video | Globe Melodies
Автор: Globe Melodies
Загружено: 2025-12-19
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सृष्टि के संतुलन की एक दिव्य यात्रा।"
भगवान शिव और माता शक्ति के 'अर्धनारीश्वर' रूप को समर्पित यह गीत, ब्रह्मा जी की विचलित अवस्था से शुरू होकर महादेव के वैराग्य मार्ग तक की कहानी कहता है। जब पौरुष और प्रकृति मिलते हैं, तभी 'सच्चा विकास' संभव होता है।
Credits:
Lyrics, Music & Concept: Dinesh Rathee
Label: Globe Melodies
Visuals: Created using Advanced AI Tools (Gemini Pro, Flow Labs, Veo)
Lyrics Excerpt: "मैं ब्रह्मा भी, मैं विष्णु भी, मैं ही हूँ महेश... अर्धनारीश्वर नाम है इसका।"
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Lyrics:
शिव शिव शंकरा अर्धनारीश्वरः
शिव शिव शंकरा अर्धनारीश्वरः
तेरा नाम लेकर तुझ-सा बनना,
तेरे साथ चलना, तेरे साथ चलना…
सृष्टि रची जब ब्रह्मा ने, तब अस्त-व्यस्त संसार था,
मानव जीता, मानव मरता , जीवन का न कोई आधार था।
ब्रह्मा जी भी हार गए थे, रोज जीव को रचते-रचते,
तीनों लोक थककर निकले, शिव तक पहुँचे बचते-बचते।
“भोले भंडारी , कल्याण करो,
मेरी दुविधा का समाधान करो।
आप शून्य भी हैं, अनंत भी,
आदि भी और अंत भी।
मैं विचलित हूँ इस रचना से,
आप आदि योगी, आनंद भी।”
शिव शांत बैठे… फिर बोले,
“सुनो ब्रह्मा, तुम्हारी बेचैनी मुझे ज्ञात है।
न मुझसे छिपी रह सकती है,
तुम्हारे अंतःकरण की फ़रियाद है।”
“सृष्टि जो तुमने रची, वह तीनों लोकों में विख्यात है,
पर तुम थक जाते हो रोज रचते—
यह चक्र अभी स्वयं नहीं पर्याप्त है।”
मैं जब भी गहरे ध्यान में जाता हूँ,
ना मुझसे पुराना कोई इस दुनिया में।
मैं खुद को ही तो पाता हूँ—
मैं ब्रह्मा भी, मैं विष्णु भी, मैं ही हूँ महेश।
मैं ही हूँ जप, मैं ही हूँ तप,
ना मुझसे कोई विशेष।
शिव शिव शंकरा अर्धनारीश्वरः
शिव शिव शंकरा अर्धनारीश्वरः
तेरा नाम लेकर तुझ-सा बनना,
तेरे साथ चलना, तेरे साथ चलना…
शिव आगे बोले—
“आज तुम्हें वह रूप दिखाऊँ,
जो संसार ने अब तक न देखा,
अर्धनारीश्वर नाम है इसका —
आने वाले युग की नई रूप-रेखा।”
आधा भाग तप, वीर्य के पौरुष का तेज अपार है,
आधी धारा प्रकृति की— जो कला, शक्ति और प्रेम का सार है।
जहाँ समाई ज्ञान की गंगा,
आदि शक्ति माँ जगदम्बा,
जिसका तेज प्रकाश है,
जिसे देख ब्रह्मा जी समझे
यही सृष्टि का सच्चा विकास है।
जाओ ब्रह्मा, आज संसार को देता हूँ मैं यह अर्ध-भाग,
इसके बिना मैं हूँ अपूर्ण— अपनाना होगा वैराग्य मार्ग।
आदि शक्ति से मैं दूर कभी न रह पाऊँगा,
इसलिए सूक्ष्म लोक छोड़कर
मैं भी प्रकृति में ही डेरा बनाऊँगा।
भविष्य में जब प्रकृति होगी संतुलित,
तब आदि शक्ति को सती रूप में पाऊँगा;
और कैलाश की शांत चोटी पर
मैं फिर शून्य हो जाऊँगा।
“सुन संसार… बदले में मैं तुझसे वचन एक ही चाहता हूँ—
ना ठेस पहुँचाना मेरी प्रकृति को,
मैं तांडव करने को विवश हो जाता हूँ।”
“यूँ ही नहीं मैं खुद को खोकर वैराग्य अपनाता हूँ,
मैं तेरा रक्षक हूँ, कोई भक्षक नहीं—
कल्याण तेरा ही चाहता हूँ।”
शिव शिव शंकरा अर्धनारीश्वरः…
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