इसे हजार बार सुने, हजार बार आपको लाखों अनुभव होंगे | दुर्लभ से दुर्लभ सहजावस्था से आत्म साक्षात्कार
Автор: Vasudev Sarvam : वासुदेव सर्वम
Загружено: 2025-03-02
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हाँ, सहज में पुकार रहा हूँ, तो जब आप सहज में आ जाते हो, तो सहजता और सहजता मिल जाती है। सहजा पर करना है, तो सहजा अवस्था तो एकदम वाइल्ड है। वहाँ जंगल का एक फूल होता है ना, जो आंधी में और एकांत में, जिसको कोई देखता नहीं है, और आंधी चल रही है, और वह बस उखड़ने वाला ही है और उखड़ता नहीं है। इतनी नाजुक है सहजा अवस्था, महाभोग है सहजा अवस्था। आप लोग तो त्याग करते हो, आप लोगों के जीवन का भोग क्या है? त्याग है। भोग तो सहजा वाला कर, महाभोग; महाभोग है सहजा अवस्था। त्याग—पहले आप हर विषय से अवेयर होते हो, उसका त्याग करते हो, है ना? उसमें लिप्त नहीं होते। ठीक है, दुर्लभ है; दुर्लभ विषय। बताओ, विषय को विष की भाँति त्याग देना चाहिए, सारे विषय जो भी। फिर आपको अपना बोध होता है—स्व का बोध। दर्शन, तत्व का दर्शन, उससे भी दुर्लभ है, और लास्ट है दुर्लभ सहजा अवस्था, सदगुरु करुणा बिना। प्रथम है विषय का त्याग, द्वितीय है स्व का बोध, और थर्ड है विषय-अनुभूति ही आत्मानुभूति है। लेकिन लास्ट में, विषय-अनुभूति ही आत्मानुभूति। विषय के अनुभव काल में, ठीक उसी समय में, जिस समय आप विषय का अनुभव कर रहे हो, ठीक उसी समय में आपको यह पता नहीं रहता कि यह विषय है, मैं अनुभव करने वाला हूँ और अनुभव की क्रिया हो रही है। तीनों का अभाव होता है, केवल आत्मा ही होती है, विषय नहीं होते उस समय। आत्मा—देह भी आत्मा है, मन भी आत्मा है, मन से जो भी उठता है, वह भी आत्मा है; ब्रह्म, अब ब्रह्म, सब आत्मा; विषय और त्याग, दोनों आत्मा। हाँ जी, दुर्लभ सहजा अवस्था। हाँ, वह आत्मज्ञान के परे का स्टेज है—अति दुर्लभ, दुर्लभ से भी दुर्लभ। सहजा अवस्था बिल्कुल सहज है, और सहजता से ही प्राप्त होती है—अति दुर्लभ। वाइल्ड फ्लावर, जंगल में खिला हुआ, और आंधियाँ चल रही हैं, और आपको ऐसा लगेगा कि फ्लावर उखड़ रहा है, और उखड़ नहीं है। जैसे ही निष्ठा आती है, तो शराब भी हट जाते हैं और शबाब भी हट जाते हैं, और गुरु प्रकट हो जाता है। प्रणाम। दुर्लभ हो, सहजा अवस्था अति दुर्लभ है। प्रणाम। पत्थर से परमात्मा तक की वह जर्नी।
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