“सब कुछ तुझमें — तुझको अर्पण” |
Автор: Learn Advaita Vedanta
Загружено: 2025-10-28
Просмотров: 114375
“सब कुछ तुझमें — तुझको अर्पण”
एक मधुर भक्ति-गीत है जो जीवन के प्रत्येक कर्म, विचार और भावना को भगवान को समर्पित करने का संदेश देता है। इस गीत में मन, इंद्रियों और अहंकार का पूर्ण समर्पण व्यक्त किया गया है — जहाँ हर सांस, हर दृष्टि, हर कर्म ब्रह्म को अर्पण बन जाता है।
बांसुरी की कोमल ध्वनि और राग यमन की मधुरता में यह गीत भक्ति और प्रेम का अद्भुत संगम है — जैसे आत्मा कृष्ण की मुरली में विलीन हो रही हो।
सब कुछ तुझमें, तुझको अर्पण |
सा रे ग म प…
प ध नि सा, सा नि ध प म ग…
मौन में जो बोले धीमे, वही परम सत्य ध्वनि ॥
सब कुछ तुझमें, तुझको अर्पण, हे नाथ जगदगुरु मोरे ॥
साँस-साँस में तू समाया, जीवन हरि तुझको न्योरे ॥
मन में जब उठे विचार,
तू ही बन जा उस मन का सार ।
भाव उठे जो भीतर गहरे,
उनमें बस तेरा ही नाद बहे रे ।
चित्त, बुद्धि, अहंकार सब,
तेरे चरणों में करते समर्पण अब ।
न मैं सोचूँ, न मैं जानूँ,
जो तू चाहें, वही मानूँ ॥
सब कुछ तुझमें, तुझको अर्पण, हे नाथ जगदगुरु मोरे ॥
साँस-साँस में तू समाया, जीवन हरि तुझको न्योरे ॥
जो देखूँ, वही तेरा रूप,
जो सुनूँ, वही तेरा स्वरूप ।
जो सुवास मिले वह तेरी गंध,
रसना चखे — तेरी ही वंदन।
स्पर्श में भी तेरा ही सुख,
तेरे बिना न एक भी मुख ।
दृष्टि, श्रवण, रस, घ्राण, स्पर्श,
सब हों तुझमें, हे विश्वपुर्ष ॥
सब कुछ तुझमें, तुझको अर्पण, हे नाथ जगदगुरु मोरे ॥
साँस-साँस में तू समाया, जीवन हरि तुझको न्योरे ॥
पग-पग चलूँ तेरी राह,
हर कर्म बने तेरा उपवाह ।
देना-लेना, हँसना-रोना,
सब बन जाए तेरा भजना।
श्वासोच्छ्वास में नाम तेरा,
मौन में भी धाम तेरा ।
कर्म, अकर्ता भाव से हो,
तेरी इच्छा में जीवन खो ॥
सब कुछ तुझमें, तुझको अर्पण, हे नाथ जगदगुरु मोरे ॥
साँस-साँस में तू समाया, जीवन हरि तुझको न्योरे ॥
कहूँ मैं करूँ, यह भाव गया,
“मैं” भी तू ही, सब तेरा हुआ ।
ब्रह्माहमस्मि — यह दृढ़ भावना,
मैं ही तू, तू ही मैं, यह साधना।
देह-बुद्धि के बंधन टूटे,
मन में केवल शुद्ध तू झूटे ।
अहंता का तिलक मिटा,
साक्षात् तू हर श्वास बसा ॥
सब कुछ तुझमें, तुझको अर्पण, हे नाथ जगदगुरु मोरे ॥
साँस-साँस में तू समाया, जीवन हरि तुझको न्योरे ॥
न बोल, न मौन, बस तेरा ध्यान,
तू ही साधक, तू ही ज्ञान ।
कर्मों में भी समाधि रहे,
शब्दों में भी मौन बहें ।
युद्ध में भी शांति हो,
अश्रु में भी प्रीति हो ।
जग में चलते रहते कर्म,
पर भीतर नित परमधर्म ॥
सब कुछ तुझमें, तुझको अर्पण, हे नाथ जगदगुरु मोरे ॥
साँस-साँस में तू समाया, जीवन हरि तुझको न्योरे ॥
भक्ति न विधि, न भय से जन्मे,
भक्ति सहज, स्वभाव में रम्ये ।
हर कर्म ब्रह्मार्पण बने,
हर सांस में प्रेम जगे ।
जो भी हो सहज, वही पूजा,
न दिखावा, न दूजा ।
जीवन तेरा मंदिर बने,
हर कण तुझमें विलीन रहे ॥
सब कुछ तुझमें, तुझको अर्पण, हे नाथ जगदगुरु मोरे ॥
साँस-साँस में तू समाया, जीवन हरि तुझको न्योरे ॥
न मैं देह, न मन, न नाम,
नश्वर जग का मृगछल काम ।
मैं वही, जो सदा अचल,
आत्मा परम, सत्य अटल ।
भक्ति, ज्ञान, कर्म समरस,
तू ही मेरा एक रस ।
अब न कुछ पाना, न कुछ छोड़ना,
सब तुझमें, बस तुझको ओढ़ना ॥
सब कुछ तुझमें, तुझको अर्पण, हे नाथ जगदगुरु मोरे ॥
साँस-साँस में तू समाया, जीवन हरि तुझको न्योरे ॥
हे ब्रह्मस्वरूप, प्रेमसिन्धु,
सहज अर्पण — भागवत धर्म तोरे ॥
Note:
This devotional content was created with the support of AI tools under human guidance.
It is intended solely for spiritual and creative expression.
Copyrights © 2025 Learn Advaita Vedanta.
Доступные форматы для скачивания:
Скачать видео mp4
-
Информация по загрузке: