MAGISTRATE CAN NOT REVIEW COGNIZANCE ORDER ON PROTEST PETITION : DELHI HC
Автор: Advocate VIPUL SHARMA BAGDA
Загружено: 2025-09-20
Просмотров: 362
यह पाठ दिल्ली हाईकोर्ट के एक महत्वपूर्ण फैसले की रूपरेखा प्रस्तुत करता है, जिसमें यह स्पष्ट किया गया है कि एक मजिस्ट्रेट को भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (BNSS) की धारा 358 (जो पहले CrPC की धारा 319 थी) के तहत किसी अपराध का संज्ञान लेने का अधिकार नहीं है। जस्टिस अमित महाजन ने फैसला सुनाया कि यह प्रावधान केवल जांच या सुनवाई के दौरान ही लागू होता है, संज्ञान के चरण में नहीं। हाईकोर्ट ने उस प्रक्रिया में त्रुटि पाई जहां मजिस्ट्रेट ने एक विरोध याचिका पर संज्ञान लेने के अपने पूर्व आदेश की समीक्षा करते हुए ससुराल वालों को समन जारी किया था। अदालत ने जोर दिया कि संज्ञान केवल एक बार लिया जा सकता है और मजिस्ट्रेट अपने पूर्व आदेश की समीक्षा नहीं कर सकते, जिससे पुनर्विचार का आदेश रद्द हो गया। यह फैसला BNSS के तहत मजिस्ट्रेट की शक्तियों की सीमाओं और आपराधिक प्रक्रिया के चरण को स्पष्ट करता है।
Доступные форматы для скачивания:
Скачать видео mp4
-
Информация по загрузке: