धनोरा मेला 2025 || कोण्डागांव जिले का प्रसिद्ध मेला ||
Автор: BASTAR K VLOG
Загружено: 2025-04-19
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धनोरा मेला 2025 || कोण्डागांव जिले का प्रसिद्ध मेला ||
धनोरा मेला छत्तीसगढ़ के कोण्डागांव जिले का एक प्रसिद्ध और पारंपरिक मेला है, जो हर वर्ष बड़े धूमधाम से आयोजित किया जाता है। यह मेला धनोरा ग्राम में होता है और स्थानीय संस्कृति, परंपराएं और जनजातीय जीवनशैली का अद्भुत संगम प्रस्तुत करता है।
धनोरा मेला की विशेषताएं:
आदिवासी संस्कृति का प्रदर्शन: मेला में गोंड, मुरिया, बस्तरिया जैसी जनजातियों की लोककला, नृत्य और संगीत देखने को मिलते हैं।
हाट-बाजार और हस्तशिल्प: लोक कलाकार और शिल्पकार अपने पारंपरिक सामान, जैसे टेराकोटा, लकड़ी की नक्काशी, बांस शिल्प आदि बेचते हैं।
पारंपरिक खेल और झूले: ग्रामीण परिवेश में होने वाले इस मेले में पारंपरिक खेलों और झूलों का भी आनंद लिया जा सकता है।
धार्मिक आयोजन: मेला किसी धार्मिक या पौराणिक मान्यता से जुड़ा होता है, जिसमें देवी-देवताओं की पूजा-अर्चना की जाती है।
बस्तरिया देवी-देवताओं का मेला-मंडई बस्तर अंचल की एक अनोखी और पारंपरिक सांस्कृतिक परंपरा है, जो इस क्षेत्र की आदिवासी आस्था, लोकपरंपराओं और देवी-देवताओं की श्रद्धा को दर्शाती है।
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क्या है मेला-मंडई?
मेला-मंडई बस्तर क्षेत्र में आयोजित होने वाला धार्मिक और सांस्कृतिक आयोजन है, जिसमें आदिवासी देवी-देवताओं की यात्राएँ, पारंपरिक अनुष्ठान, और लोक नृत्य-संगीत शामिल होते हैं। इसे आमतौर पर "मंडई" कहा जाता है, जो गाँव-गाँव में आयोजित होता है, और बड़े मंडई जिला स्तर या किसी विशेष देवस्थान में आयोजित किए जाते हैं।
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बस्तरिया देवी-देवताओं की विशेषता:
1. स्थानीय देवी-देवता: बस्तर में प्रत्येक गाँव या क्षेत्र के अपने ग्राम देवता होते हैं जैसे बूढ़ा देव, मावली माता, गौरी-गौरा, आंगादेव, दांतेश्वरी माता, आदि।
2. पारंपरिक पुजारी: इन्हें गुंडा, भोंगा या सिरहा जैसे पुजारियों के माध्यम से पूजा जाता है, जो trance (भावावेश) में जाकर देवी-देवता से संवाद करते हैं।
3. देव यात्राएं: मेला-मंडई के समय, देवी-देवताओं को पालकी, नागर या ध्वज पर बिठाकर गाँव-गाँव यात्रा करवाई जाती है।
4. देव मिलन: कई बार एक स्थान पर अनेक गाँवों के देवी-देवता इकठ्ठा होते हैं, इसे देव मिलन कहा जाता है।
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मेला-मंडई में क्या-क्या होता है?
पारंपरिक पूजा और बलि प्रथा (कुछ स्थानों पर):
नृत्य और मांदरी/ढोल की थाप पर गीत:
हस्तशिल्प, लोककला और हाट-बाजार:
देवगुड़ी की सजावट और सांस्कृतिक कार्यक्रम:
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आध्यात्म और संस्कृति का संगम
यह आयोजन केवल धार्मिक नहीं होता, बल्कि ये मेले सामाजिक मेलजोल, संस्कृति संरक्षण, और सामूहिक पहचान का प्रतीक होते हैं।
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