आँखों में रात - जनाब शीन काफ़ निज़ाम (Ankhon Mein Raat - Janab Sheen Kaaf Nizaam)
Автор: Pramod Shah
Загружено: 2020-06-19
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" तू क्यूँ चिराग़ लेके अँधेरे के घर गया" - जनाब शीन काफ़ निज़ाम
३१ दिसंबर, २०१६ को 'एक शाम अदब के नाम -११' में मुशाअरा पढ़ते हुए जनाब शीन काफ़ निज़ाम !
ग़ज़ल
आँखों में रात ख्वाब का ख़ंजर उतर गया
यानी सहर से पहले चिराग़े -सहर गया
(सहर =प्रातः काल, चिराग़े-सहर =प्रातः काल का बुझाने वाल दीपक)
आँसू मेरे तो मेरे ही दामन में आये थे
फिर आस्मान कैसे सितारों से भर गया
निकली है फाल अब के अजब मेरे नाम की
सूरज ही वो नहीं है, जो ढलने से डर गया
(फाल =शकुन -विचार, अजब =विचित्र)
इस फ़िक्र ही में अपनी तो गुज़री तमाम उम्र
मैं उसको था पसंद तो क्यूँ छोड़कर गया
कोई दुआ कभी तो हमारी क़ुबूल कर
वरना कहेंगे लोग दुआ से असर गया
मैं , तुझसे पूछता हूँ ज़रूरत थी क्या 'निज़ाम'
तू क्यूँ चिराग़ ले के अँधेरे के घर गया
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