Nitya Karm Gita - Bhagawad Geeta Sharansh In Hindi - Gita Path - Mahabharath - My Guru
Автор: My Guru
Загружено: 2021-10-21
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नित्य कर्म गीता
ॐ ईश्वर, दीनबंधु, दीनानाथ,
पतित - पावन, जगत - रक्षक,
निराकार, ज्योति - स्वरुप,
सर्वशक्तिमान,
परमपिता परमात्मा का
स्मरण करते हुए हम इस
"नित्य कर्म गीता" का
पाठ करते हैं।
आदि अनादि सत्य है, भूत भविष्य सत्य
वर्तमान भी सत्य है, वेद कहें ये तत्व
ॐ धर्मश्रेत्र कुरुक्षेत्र में, सेना भई अपार
कौरव और पांडव जुड़े, आये कृष्णमुरार
धृतराष्ट्र पूछन लगे, हे संजय बुद्धिमान
क्या होता कुरुक्षेत्र में, हमसे कहो बखान
कहे मंत्री कर जोड़कर, सुनो राज महाराज
पांडव की सेना निरख, दुर्योधन मन लाज
अर्जुन अब विनती करे, श्रीकृष्ण सो राज
हमरे रथ को ले चलो, सेना देखन काज
मोहवश अर्जुन युद्ध से इंकार करते हुए कहते है -
हांक्यो रथहिं सेन मध्य जाई
सेना देख अर्जुन मुरझाई
कांपत पार्थ का हिया विशाल
शिथिल अंग, गई कांति भाल
भाई बंधु अरु कुटुंब अपारा
इनको मार नहीं निस्तारा
हमरे कुल के बड़े महान
भीष्म जैसे हैं गुण खान
गुरु द्रोण और उनके भाई
इनको मार जुगों भल नाई
मार गुरु को राज कमाना
इससे भला मांगकर खाना
कारण राज भाई बंधु मारूं
निंदा सहूँ, लोक परलोक बिगाडूं
चार दिवस के हैं मेहमाना
रुधिर दग्ध नहीं भोजन खाना
यह विचार अर्जुन कियो, दिया धनुष को डार
लड़ने की इच्छा तजी, देखत कृष्णमुरार
श्री कृष्ण भगवान अर्जुन से कहते है -
क्या होत है या समय, पार्थ औ रणधीर
हमसे तो वर्णन करो, नयन जात क्यों नीर
नयन जात क्यों नीर, हुआ क्यों विकल शरीर
शोक मगन मन क्यों कियो, राखो हृदय गंभीर
अर्जुन अपना संशय प्रकट करते है -
वर्णन करूं क्या भगवान
तुम जानत हो मन की बान
किस हेतु हम यहां पधारे
शत्रु कोई ना दीखे हमारे
चतुरंगी सेना जो आई
इसमें हमरे सब नाताई
भाई बंधु और चचेरे फुफेरे
नाना ससुर पितामह मेरे
गुरु और सुत उनके साथ
देखत जिन्हें बदरे गात
युद्ध कहाँ सों कीजै भाई
जाको मार अभय हो जाई
भाई बंधु गुरु मारे जोय
जनम-जनम कोढी वह होय
भाई बंधु को मारे पाप
उनकी त्रिया करे विलाप
तजे सनातन कुल के धर्म
वर्ण संकर सन्ताने जनम
पिंड आदि क्रिया सब जाई
पितृ जाये पुरी यमराई
ऐसो नीच कर्म मैं जान
शिथिल गात, गिरे धनुष-बान
दुर्योधन है हमारो भाई
नाथ युद्ध मम वांछा नाहीं
भगवान श्री कृष्ण उपदेश प्रारम्भ करते है -
अर्जुन आज हुए नादाना
वचन कहत हो शिशु समाना
हम जानत थे तुमको माहिर
देखा आज युद्ध में कायर
शास्त्र वेद भूले सब तेरे
माया मोह किए मन डेरे
मन को लाय सुनो मम बाता
भ्रम पड़ा है तुझको गाता
कई बार पसरियो पसारा
कई बार लुप्त संसारा
कई बार भीष्म अरु द्रोणा
पैदा हुए कियो फिर गौणा
कई बार दुर्योधन होई
इन संग तुमरो युद्ध मचोई
कई बार पांडव कुल माहे
पैदा हुए युधिष्ठिर राय
कई बार भाई बंधु जान
कई बार मात पितृ मान
कई बार यह उपजी सृष्टि
कई बार प्रलय की दृष्टि
कई बार सुर असुर समूहा
कई बार शशि सूरज हुआ
कई बार तू पैदा जान
कई बार मैं प्रकट महान
कौन किसी को मारे आप
कौन किसी को दे संताप
कौन किसी का बंधु जान
कौन किसी संग रहे मिलान
अजर अमर यह है जीव पछानो
अजर अमर ना काया मानो
जीर्ण वस्त्र छोड़ो जैसे
आत्मा तजे यह काया तैसे
कर्म गति सो जावे भाई
दूसर काया रहे समाई
काटे कटे ना जारे जरे
सूखे वायु ना डूबे मरे
नित्य सदा यह आत्मा जानो
यह विचार युद्ध मन में ठानो
अरे कौंतेय मृदु घनघोर
अंबर में भर दे निज रोर
अर्जुन कहते है -
नाशवान यह काया नाथ
नाशवान सब सृष्टि उत्पात
नाशवान यह बंधु सहेले
नाशवान यह सभी झमेले
काहे हेत फिर युद्ध कराओ
काहे हेत मोहे पाप लगाओ
काहे हेत यह माया मोह
काहे हेत द्रव्य धन खोह
काहे हेत यह करु पसारा
मरणकाल जो नाथ हमारा
जाना है जब खाली हाथ
क्यों करूँ यह सब उत्पात
भगवान श्री कृष्ण कहते है -
मन की यह कल्पना जान
मन त्रिगुण में रहे समान
मन ही हंसत मन ही रोये
मन पुरुष को जात बगोये
मन की करत बड़ी चतुराई
मन ही जीव को रहे भरमाई
मन ही स्थिर करो धनंजय
मन को बांध कर्म के फंदे
मन ते फल की आशा छोड़
मन शुभ कर्म लगाओ ठोड़
कर्म तजे जो ही नर मूढ़
कर्म किए बिन ज्ञान ना ग़ूढ
कर्म किए बिन सिद्धि ना होये
कर्म किए बिन पाप ना खोये
कर्म किए बिन नहीं छुटकारा
कर्म किए बिन होत ना पारा
कर्म गति है सकल जहान
वेद श्रुति यह करें बखान
कर्म किए बिन ज्ञान ना पाये
ज्ञान पाये बिन मुक्ति ना आये
ज्ञान मुक्ति का जानो सार
ज्ञान पाये मिटे अंधकार
ज्ञान कर्म में सृष्टि उपजाऊं
ज्ञान कर्म जब जोग सिखाऊं
ज्ञान कर्म में लूँ अवतार
ज्ञान कर्म टारूं महि-भार
ज्ञान कर्म मोहे रूप अनेका
ज्ञान कर्म से रहूँ विवेका
ज्ञान कर्म विस्तार बडाई
ज्ञान कर्म सूक्ष्म हो जाई
ज्ञान कर्म सब तीर समाऊं
ज्ञान कर्म सब कर्म चलाऊँ
ज्ञान राखो पार्थ निज उर में
कर्म करो निश्चय ही जग में
क्षत्री कर्म है तुमरो भाई
धर्म राख अब करो लड़ाई
धर्म कर्म में साथी होय
धर्म किए यश लोकों दोय
धर्म विप्र का विद्या जान
पढ़ें वेद और करें बखान
क्षत्री धर्म सबकी रक्षा करें
जीत करें या रणभूमि में मरे
धर्म वैश्य पुण्य बनिज बखान
शूद्र सबकी सेवा मान
धर्म तजे जो अपना वीर
मिले ना ताहि मानुष शरीर
सकल लोक में निंदा होय
नरक मिले पुण्य धरम खोय
ऐसा जान करो तुम युद्ध
पर हर कायरता की बुद्ध
धर्म युद्ध में जो नर मरे
बहुर चौरासी जन्म ना पडे
अर्जुन कहते है -
मन है चंचल यादवराय
मन वश करने का कहो उपाय
मन में होत अनेक तरंग
शुभ अशुभ नहीं सूझत रंग
मन दोषी है सकल जहान
भ्रमत वेग है वायु समान
मन मेरो नहीं स्थिर नाथ
मन को कर्म चलावे साथ
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