सूर्यकांत त्रिपाठी निराला की हिंदी कविता, राजे ने अपनी रखवाली की
Автор: IRD-GIRD
Загружено: 2023-03-17
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हिंदी के क्लासिक यूट्यूब चैनल इर्द-गिर्द पर सुनिए सूर्यकांत त्रिपाठी निराला की हिंदी कविता- राजे ने अपनी रखवाली की। राजे ने अपनी रखवाली की कविता वर्तमान संदर्भों में भी उतनी ही प्रासंगिक है जितनी रचनाकाल के समय थी।
ird-gird par suniye suryakant tripathi nirala ki hindi kavita raje ne apni rakhwali ki.
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पिछली बार मैने महान साहित्यकार सूर्यकांत त्रिपाठी निराला की कहानी सुनाई थी। मेरे कई परिचितों ने कहा कि निराला जी की कविता सुनाते। वैसे निराला जी कविताएं मेरे चैनल पर मौजूद हैं, जिन्हें आप जब समय हो तब सुन सकते है।
निराला जी का सृजन संसार बहुआयामी है। उन्होंने काव्य सृजन के साथ कहानियां और निबंध भी लिखे। अनुवाद भी किया। वह हिंदी में मुक्तछंद के प्रवर्तक माने जाते हैं। उन्होंने अपने काव्य संग्रह परिमल की भूमिका में लिखा था- मनुष्यों को मुक्ति कर्म के बंधन से छुटकारा पाना है और कविता की मुक्ति छंदों के शासन से अलग हो जाना है। सूर्यकान्त त्रिपाठी 'निराला' हिन्दी कविता के छायावादी युग के चार प्रमुख स्तंभों में से एक माने जाते हैं। वे जयशंकर प्रसाद, सुमित्रानंदन पंत और महादेवी वर्मा के साथ हिन्दी साहित्य में छायावाद के प्रमुख स्तंभ माने जाते हैं। आज सुनिए उनकी एक कविता जो वर्तमान परिपेक्ष्य में भी प्रासंगिक है। राजे ने अपनी रखवाली की-
राजे ने अपनी रखवाली की;
किला बनाकर रहा;
बड़ी-बड़ी फ़ौजें रखीं ।
चापलूस कितने सामन्त आए ।
मतलब की लकड़ी पकड़े हुए ।
कितने ब्राह्मण आए
पोथियों में जनता को बाँधे हुए ।
कवियों ने उसकी बहादुरी के गीत गाए,
लेखकों ने लेख लिखे,
ऐतिहासिकों ने इतिहास के पन्ने भरे,
नाट्य-कलाकारों ने कितने नाटक रचे
रंगमंच पर खेले ।
जनता पर जादू चला राजे के समाज का ।
लोक-नारियों के लिए रानियाँ आदर्श हुईं ।
धर्म का बढ़ावा रहा धोखे से भरा हुआ ।
लोहा बजा धर्म पर, सभ्यता के नाम पर ।
ख़ून की नदी बही ।
आँख-कान मूंदकर जनता ने डुबकियाँ लीं ।
आँख खुली-- राजे ने अपनी रखवाली की ।
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