पितृदोष से पाना चाहते हैं छुटकारा तो सभी को करनी चाहिए श्री चित्रगुप्त भगवान की पूजा |Eshubhaivlogs|
Автор: Eshubhaivlogs
Загружено: 2024-03-28
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About The Shri Chitragupta bhagvan 🛐✅
मंत्री श्री धर्मराजस्य चित्रगुप्त: शुभंकर:।
पायान्मां सर्वपापेभ्य: शरणागत वत्सल:।।
एक बार युधिष्ठिरजी भीष्मजी से बोले- हे पितामह! आपकी कृपा से मैंने धर्मशास्त्र सुने, परंतु यम द्वितीया का क्या पुण्य है? क्या फल है? यह मैं सुनना चाहता हूं। आप कृपा करके मुझे विस्तारपूर्वक कहिए।
भीष्मजी बोले- तूने अच्छी बात पूछी। मैं उस उत्तम व्रत को विस्तारपूर्वक बताता हूं। कार्तिक मास के उजले और चैत्र के अंधेरे की पक्ष जो द्वितीया होती है, वह यम द्वितीया कहलाती है।
युधिष्ठिरजी बोले- उस कार्तिक के उजले पक्ष की द्वितीया में किसका पूजन करना चाहिए और चैत्र महीने में यह व्रत कैसे हो? इसमें किसका पूजन करें?
भीष्मजी बोले- हे युधिष्ठिर! पुराण संबंधी कथा कहता हूं। इसमें संशय नहीं कि इस कथा को सुनकर प्राणी सब पापों से छूट जाता है। सतयुग में नारायण भगवान से, जिनकी नाभि में कमल है, उससे 4 मुंह वाले ब्रह्माजी उत्पन्न हुए जिनसे वेदवेत्ता भगवान ने चारों वेद कहे।
नारायण बोले- हे ब्रह्माजी! आप सबकी तुरीय अवस्था, रूप और योगियों की गति हो, मेरी आज्ञा से संपूर्ण जगत को शीघ्र रचो।
हरि के ऐसे वचन सुनकर हर्ष से प्रफुल्लित हुए ब्रह्माजी ने मुख से ब्राह्मणों को, बाहुओं से क्षत्रियों को, जंघाओं से वैश्यों को और पैरों से शूद्रों को उत्पन्न किया। उनके पीछे देव, गंधर्व, दानव, राक्षस, सर्प, नाग, जल के जीव, स्थल के जीव, नदी, पर्वत और वृक्ष आदि को पैदा कर मनुजी को पैदा किया। इनके बाद दक्ष प्रजापतिजी को पैदा किया और तब उनसे आगे और सृष्टि उत्पन्न करने को कहा। दक्ष प्रजापतिजी से 60 कन्याएं उत्पन्न हुईं जिनमें से 10 धर्मराज को, 13 कश्यप को और 27 चन्द्रमा को दीं।
इतना कह ब्रह्माजी ध्यानमग्न हो गए। उसी अवस्था में उन्होंने 1,000 वर्ष तक तपस्या की। जब समाधि खुली तब अपने सामने श्याम रंग, कमल नयन, शंख की-सी गर्दन, गूढ़ सिर, चन्द्रमा के समान मुख वाले, कलम-दवात और पानी हाथ में लिए हुए, महाबुद्धि, देवताओं का मान बढ़ाने वाला, धर्माधर्म के विचार में महाप्रवीण लेखक, कर्म में महाचतुर पुरुष को देख उससे पूछा कि तू कौन है?
तब उसने कहा- हे प्रभो! मैं माता-पिता को तो नहीं जानता किंतु आपके शरीर से प्रकट हुआ हूं इसलिए मेरा नामकरण कीजिए और कहिए कि मैं क्या करूं?
ब्रह्माजी ने उस पुरुष के वचन सुन अपने हृदय से उत्पन्न हुए उस पुरुष को हंसकर कहा- तू मेरी काया से प्रकट हुआ है इससे मेरी काया में तुम्हारी स्थिति है इसलिए तुम्हारा नाम कायस्थ चित्रगुप्त है। धर्मराज के पुर में प्राणियों के शुभाशुभ कर्म लिखने में उसका तू सखा बने इसलिए तेरी उत्पत्ति हुई है।
ब्रह्माजी ने चित्रगुप्त से यह कहकर धर्मराज से कहा- हे धर्मराज! यह उत्तम लेखक तुझको मैंने दिया है, जो संसार में सब कर्मसूत्र की मर्यादा पालने के लिए है। इतना कहकर ब्रह्माजी अंतर्ध्यान हो गए।
जय श्री चित्रगुप्त भगवान की 🛐✅🚩🙏
"न्यायाधीश बैंकुंठ निवासी,
पापपुण्य लिखते ।
'नानक' शरण तिहारे,
आसन दूजी करते ॥
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