दिल को बहला के गई, ज़िन्दगी धोखा बनी
Автор: Nai Qalam Naya Kalam Official
Загружено: 2025-10-28
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दिल को बहला के गई, ज़िन्दगी धोखा बनी,
आयी जब मौत तो वो हमदम-ओ-तमन्ना बनी।
ज़िन्दगी थी बेवफ़ा, मौत मेरी हमसफ़ा बनी,
आख़िरी लम्हे में बस वही मेरी तर्जुमा बनी।
राह में ठुकरा गई ये साँसों की रहगुज़र,
आख़िरी मोड़ पे बस मौत मेरी हमनवा बनी।
राह-ए-हस्ती में मुझे कोई सहारा न मिला,
जब गले मौत लगी, तब लगी कितनी वफ़ा बनी।
दर्द की छाँव में कटती रही ये उम्र तमाम,
न मिली कोई शफ़ा, न दुआ बावफ़ा बनी।
रूह को चैन मिला उसका दामन थाम लिया,
नींद लायी न यहाँ, ख़ालिस वो सुकूँ-रहनुमा बनी।
हसरतें सब ही अधूरी, फ़क़त एक वो पूरी हुई,
ये जो मंज़िल थी मेरी, मौत वही ताजदा बनी।
साँस थक-थक के गिरी, दर्द ने पहलू दबा लिया,
टूटकर जब मैं गिरा, मौत ही दिल की आसरा बनी।
अब फ़क़ीरा को मिली ख़ुद में मोहब्बत की सज़ा,
ज़िन्दगी रुसवा रही, मौत ही मेरी आशना बनी।
✍🏼 ‘पागल फ़क़ीरा’ ✍🏼
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