कुर्मी आदिवासी दर्जा मांग के खिलाफ महारैली, तैयारी जोरों पर, चिनियां के सरईदोहर गांव में हुई बैठक
Автор: खरवार आदिवासी एकता संघ
Загружено: 2025-11-03
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कुर्मी आदिवासी दर्जा मांग के खिलाफ महारैली: तैयारी जोरों पर!
झारखंड के आदिवासी समाज में हलचल तेज है। कुर्मी समाज को आदिवासी दर्जा देने की मांग के खिलाफ 6 नवंबर को गढ़वा में प्रस्तावित महारैली की तैयारियां पूरे जोश के साथ चल रही हैं। यह आंदोलन आदिवासी पहचान, अधिकारों और ऐतिहासिक संघर्षों की रक्षा के लिए एकजुटता का प्रतीक बन रहा है। खरवार आदिवासी एकता संघ जैसे संगठन इस मुद्दे पर मुखर हो रहे हैं, ताकि झारखंड के मूल निवासियों के हक पर कोई अतिक्रमण न हो।
शनिवार को ग्राम सरईदोहर (थाना चिनियां, जिला गढ़वा) में लक्ष्मण सिंह के आवास पर एक सामाजिक कार्यक्रम का आयोजन किया गया। इस सभा में झारखंड के खरवार आदिवासी एकता संघ के केंद्रीय सदस्य *विश्वनाथ सिंह खरवार* ने मुख्य अतिथि के रूप में संबोधित किया। सभा में सैकड़ों आदिवासी भाई-बहनों ने भाग लिया, जो इस मुद्दे पर एकजुट दिखे।
सभा को संबोधित करते हुए विश्वनाथ जी ने आदिवासी समाज के गौरवशाली इतिहास को याद दिलाया। उन्होंने कहा, "हमारे आदिवासी भाइयों ने आजादी की लड़ाई, जल-जंगल-जमीन के अधिकारों और मूलभूत सुविधाओं के लिए अनगिनत बलिदान दिए हैं।"
उन्होंने स्वतंत्रता संग्राम के वीर शहीद *नीलाम्बर-पीताम्बर खरवार* और *फेतल सिंह* जैसे महापुरुषों का जिक्र किया, जिन्होंने ब्रिटिश शासन के खिलाफ अपनी शहादत दी। इन वीरों की कुर्बानी ने झारखंड की मिट्टी को हीरों से चमकाया है।
विश्वनाथ सिंह ने जोर देकर कहा, "हम झारखंड के मूल निवासी हैं। हमारी संस्कृति, परंपराएं और अधिकार किसी भी सूरत में किसी अन्य समुदाय को हस्तांतरित नहीं होंगे। कुर्मी को आदिवासी दर्जा देना हमारी पहचान पर सीधा हमला है—हम इसे किसी भी कीमत पर स्वीकार नहीं करेंगे!"
उन्होंने आदिवासी समाज के लंबे संघर्ष को रेखांकित किया, जिसमें वन अधिकार, भूमि सुधार और सामाजिक न्याय की लड़ाई शामिल है। यह दर्जा मांग न केवल कानूनी मुद्दा है, बल्कि सांस्कृतिक अस्तित्व का सवाल भी है।
विश्वनाथ सिंह ने सभी आदिवासी बंधुओं से अपील की: "आगामी 6 नवंबर को गढ़वा में होने वाली महारैली में हर हाल में शामिल हों। यह हमारी एकता का प्रदर्शन होगा। अपनी आवाज बुलंद करें, ताकि सरकार तक हमारी मांग पहुंचे और आदिवासी दर्जे की रक्षा हो सके।" उन्होंने संगठन की इकाइयों को निर्देश दिए कि गांव-गांव जाकर लोगों को जागरूक करें और रैली में भागीदारी सुनिश्चित करें।
इस अवसर पर गढ़वा जिला कमिटी की सदस्य *अमीरा सिंह खरवार* भी मौजूद रहे। उन्होंने महिलाओं की भूमिका पर जोर देते हुए कहा कि आदिवासी बहनें इस आंदोलन की रीढ़ हैं। सभा में सैकड़ों आदिवासी युवा, महिलाएं और बुजुर्ग शामिल हुए, जो नारों और संकल्पों से कार्यक्रम को उत्साहपूर्ण बनाया।
यह महारैली कुर्मी आदिवासी दर्जा मांग के खिलाफ एक बड़ा कदम है। झारखंड और गढ़वा के आदिवासी समुदायों में यह मुद्दा संवेदनशील है, क्योंकि इससे आरक्षण, वन अधिकार और सांस्कृतिक संरक्षण प्रभावित हो सकता है। खरवार आदिवासी एकता संघ जैसे संगठन शांतिपूर्ण लेकिन दृढ़ विरोध की रणनीति पर काम कर रहे हैं। यदि आप आदिवासी हैं, तो इस आंदोलन में भाग लेकर अपनी पहचान मजबूत करें।
यह आंदोलन न केवल वर्तमान पीढ़ी के लिए, बल्कि आने वाली पीढ़ियों की सुरक्षा के लिए जरूरी है।
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