सन्ध्योपासनम्।sandhyopasan vidhi with lyrics सम्पूर्ण सन्ध्या विधि पाठ।
Автор: Dhram sangh kolayat
Загружено: 2022-12-04
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संध्या का समय - सूर्योदय से पूर्व जब कि आकाश में तारे भरे हुए हों, उस समय की संध्या उत्तम मानी गयी है। ताराओं के छिपने से
सूर्योदय तक मध्यम और सूर्योदय के बाद की संध्या अधम होती है ।
सायंकाल की संध्या सूर्य के रहते कर ली जाय तो उत्तम, सूर्यास्त के
बाद और तारों के निकलने के पूर्व मध्यम और तारा निकलने के बाद अधम मानी गयी है ।
संध्या की आवश्यकता
नियमपूर्वक जो लोग प्रतिदिन संध्या करते हैं, वे पापरहित होकर
सनातन ब्रह्मलोक को प्राप्त होते हैं-
इस पृथ्वीपर जितने भी स्वकर्मर हित द्विज (ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य)
हैं, उनको पवित्र करने के लिये ब्रह्मा ने संध्या की उत्पत्ति की है। रात या दिन में
जो भी अज्ञानवश विकर्म हो जायँ, वे त्रिकाल संध्या करने से नष्ट होजाते हैं
जिसने संध्या का ज्ञान नहीं किया, जिसने संध्या की उपासना नहीं की,
वह (द्विज) जीवित रहते शूद्र-सम रहता है और मृत्यु के बाद कुत्ते आदिकी योनि को प्राप्त करता है-
ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य आदि संध्या नहीं करें, तो वे अपवित्र हैं और
उन्हें किसी पुण्यकर्म के करने का फल प्राप्त नहीं होता ।
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