मैंने मनुस्मृति क्यों जलाई? | 25 दिसंबर 1927 का सच | बाबासाहेब की आवाज़
Автор: PRASHANT MAITREYA
Загружено: 2025-12-24
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25 दिसंबर 1927 — महाड़।
यह वीडियो किसी किताब की कहानी नहीं है।
यह उस सोच के खिलाफ खड़ा होने की कहानी है
जिसने सदियों तक मनुष्य की कीमत
उसके जन्म से तय की।
मनुस्मृति को जलाना
क्रोध का कार्य नहीं था।
यह कोई आवेग नहीं था।
यह वर्षों की चुप्पी के बाद लिया गया
एक शांत लेकिन निर्णायक निर्णय था।
इस वीडियो में आप सुनेंगे —
क्यों केवल लेख और भाषण पर्याप्त नहीं थे,
क्यों विरोध को सार्वजनिक बनाना जरूरी था,
और क्यों उस दिन आग सिर्फ कागज़ को नहीं,
एक पूरी मानसिकता को चुनौती दे रही थी।
यह वीडियो किसी धर्म के विरुद्ध नहीं है।
यह किसी व्यक्ति की आस्था के विरुद्ध नहीं है।
यह उस व्यवस्था के विरुद्ध है
जिसने कहा था कि
कुछ लोग पढ़ेंगे और कुछ नहीं,
कुछ लोग मंदिर में जाएंगे और कुछ बाहर खड़े रहेंगे,
कुछ लोग मनुष्य माने जाएंगे और कुछ नहीं।
महाड़ की वह सुबह
इतिहास की कोई दुर्घटना नहीं थी।
वह एक चेतन निर्णय था —
यह बताने के लिए कि
मनुष्य की गरिमा
किसी भी ग्रंथ से ऊपर होती है।
यह कहानी केवल अतीत की नहीं है।
यह सवाल आज भी जीवित है
क्या हम अन्याय को परंपरा कहकर स्वीकार करेंगे,
या उस पर प्रश्न करना सीखेंगे?
📌 यह वीडियो नफरत नहीं फैलाता
📌 यह वीडियो हिंसा का समर्थन नहीं करता
📌 यह वीडियो सोच को चुनौती देता है
अगर आप मानते हैं कि
समानता कोई उपकार नहीं, बल्कि अधिकार है
तो यह वीडियो आपके लिए है।
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