मां बेतवा बुंदेलखंड की जीवनरेखा, संस्कृति और श्रद्धा की प्रतीक
Автор: सिंगाजी समाचार
Загружено: 2025-10-31
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मां बेतवा बुंदेलखंड की जीवनरेखा, संस्कृति और श्रद्धा की प्रतीक
रायसेन (म.प्र)
राहुल बैरागी/राम भरोस विश्वकर्मा
नमस्कार! आप देख रहे हैं दैनिक सिंगाजी समाचार और मैं हूँ [एंकर का नाम]।
आज हम आपको दिखाने जा रहे हैं बुंदेलखंड की उस पवित्र धारा की कहानी,
जो सिर्फ एक नदी नहीं, बल्कि जीवन, संस्कृति और आस्था की प्रतीक है — मां बेतवा।
झिरीबहेड़ा ग्राम से निकलती नदी, बहता निर्मल जल, हरे-भरे तट)
मध्यप्रदेश के रायसेन जिले के ग्राम झिरीबहेड़ा से निकलती है मां बेतवा —
जिसे प्राचीन काल में वेत्रवती नदी के नाम से जाना जाता था।
यही वह पवित्र भूमि है, जहाँ से यह नदी अपना सफर शुरू करती है
और उत्तर प्रदेश के हमीरपुर जिले में जाकर यमुना नदी से मिलती है।
(नदी का बहाव – बुंदेलखंड के गांवों से गुजरती हुई, घाटों पर पूजा-अर्चना करते श्रद्धालु)
लगभग 590 किलोमीटर लंबी यह नदी बुंदेलखंड की जीवनरेखा कही जाती है।
महाभारत, रामायण और स्कंदपुराण जैसे ग्रंथों में इसका उल्लेख “वेत्रवती” नाम से मिलता है।
कहा जाता है, इस पावन नदी में स्नान करने से पापों का नाश और मोक्ष की प्राप्ति होती है।
(ओरछा किला, बेतवा किनारे के मंदिर, घाटों पर दीपदान)
ओरछा, झांसी, टीकमगढ़ और विदिशा जैसे नगरों की संस्कृति, स्थापत्य और परंपरा —
सब कुछ मां बेतवा की ही गोद में फली-फूली है।
बुंदेला राजाओं ने इस नदी को जीवन का आधार माना
और इसके तटों पर भव्य किले, मंदिर और छतरियाँ बनवाईं।
(ओरछा में बेतवा आरती, कार्तिक पूर्णिमा पर दीपदान, श्रद्धालुओं की भीड़)
ओरछा के घाटों पर आज भी रोज होती है मां बेतवा की आरती।
कार्तिक पूर्णिमा, नवरात्र और सावन मास में यहाँ लाखों श्रद्धालु जुटते हैं।
स्थानीय लोग इसे “मां बेतवा” कहकर पूजते हैं —
मानो यह नदी नहीं, साक्षात देवी स्वयं हों।
(प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री के भाषण के अंश – बेतवा संरक्षण परियोजना से संबंधित विज़ुअल)
मां बेतवा के संरक्षण के लिए केंद्र और राज्य सरकार दोनों सक्रिय हैं।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव की पहल पर
झिरीबहेड़ा उद्गम स्थल को पवित्र धरोहर क्षेत्र के रूप में विकसित किया जा रहा है।
साथ ही, केन–बेतवा लिंक परियोजना के माध्यम से बुंदेलखंड को जलसंपन्न बनाने का प्रयास जारी है।
(सेव बेतवा अभियान, स्कूल के बच्चे पौधारोपण करते हुए, ग्रामीणों का सफाई अभियान)
सरकार के साथ-साथ स्थानीय ग्रामीण और सामाजिक संस्थाएँ भी आगे आ रही हैं।
“सेव बेतवा अभियान” के तहत नदी तटों की सफाई, वृक्षारोपण और धार्मिक पर्यटन को बढ़ावा दिया जा रहा है।
लोग चाहते हैं कि आने वाली पीढ़ियाँ भी इस पवित्र धारा की निर्मलता का अनुभव कर सकें।
“मां बेतवा केवल एक नदी नहीं —
यह बुंदेलखंड की आत्मा है, जो इस धरती को जीवन देती है
और हमारी संस्कृति को सदियों से सींचती आ रही है।”
स्लो मोशन में सूर्यास्त, नदी का प्रवाह, पृष्ठभूमि में आरती की ध्वनि
तो यह थी मां बेतवा की पावन कहानी —
एक ऐसी नदी, जो जल ही नहीं, जीवन और आस्था का संगम है
सिंगाजी समाचार टीम का यह विशेष कवरेज
आपको झिरीबहेड़ा के उस पवित्र उद्गम स्थल से दिखाया गया,
जहाँ से बुंदेलखंड की जीवनधारा प्रवाहित होती है।
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