चुपके चुपके रात दिन आंसू बहाना याद है हमको अब तक है आशिकी का वह जमाना याद है
Автор: प्रवीण पाण्डेय मऊगंज रीवा M.P
Загружено: 2022-04-18
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चुपके चुपके रात दिन आंसू बहाना याद है हमको अब तक आशिकी का वह जमाना याद है दोपहर की धूप में मेरे बुलाने के लिए वह तेरा कोठे पर नंगे पांव आना याद है गुलाम अली जी की यह ग़ज़ल धीरेंद्र त्रिपाठी जी के द्वारा हारमोनियम की गजब की प्लेइंग
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