भगवद गीता अध्याय 15: पुरुषोत्तम योग | संसार रूपी उल्टा वृक्ष |
Автор: Anant Yatra: "ज्ञान से मुक्ति, कर्म से शक्ति "
Загружено: 2025-12-14
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"ऊर्ध्वमूलमधःशाखमश्वत्थं प्राहुरव्ययम्" (जिसकी जड़ें ऊपर हैं और शाखाएं नीचे, उस संसार रूपी अश्वत्थ वृक्ष को अविनाशी कहते हैं।)
भगवद गीता का अध्याय 15 (पुरुषोत्तम योग) सबसे छोटे अध्यायों में से एक है, लेकिन इसे "वेदांत का सार" माना जाता है। इस अध्याय में भगवान कृष्ण संसार की तुलना एक ऐसे पीपल के पेड़ (Banyan Tree) से करते हैं, जिसकी जड़ें ऊपर (परमात्मा में) हैं और शाखाएं नीचे (संसार में) फैली हुई हैं।
अध्याय 15 के मुख्य रहस्य:
उल्टा वृक्ष (The Upside-Down Tree): यह संसार एक जादुई वृक्ष है। इसे काटने का केवल एक ही तरीका है—वैराग्य रूपी कुल्हाड़ी (The Axe of Detachment)।
आत्मा की यात्रा: जैसे हवा फूलों से सुगंध को ले जाती है, वैसे ही आत्मा पुराने शरीर से मन और इंद्रियों को लेकर नए शरीर में प्रवेश करती है।
भगवान कहां हैं?
सूर्य और चंद्रमा के तेज में मैं हूँ।
पेट में भोजन पचाने वाली जठराग्नि (Vaishvanara Fire) मैं हूँ।
सबके हृदय में समृति और ज्ञान देने वाला मैं हूँ।
पुरुषोत्तम कौन है?
क्षर (Kshara): नाशवान शरीर और संसार।
अक्षर (Akshara): अविनाशी जीवात्मा।
पुरुषोत्तम (The Supreme Person): जो इन दोनों से परे और उत्तम है—वही श्री कृष्ण हैं।
इस अध्याय को सुनने मात्र से मनुष्य पापों से मुक्त होकर 'बुद्धिमान' हो जाता है। जुड़े रहें 'अनंत यात्रा' (Anant Yatra) के साथ।
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