बलराम रेवती विवाह | नर नारायण कथा | पाण्डवों युद्ध अभ्यास | श्री कृष्ण महाएपिसोड
Автор: Shree Krishna
Загружено: 2024-10-15
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द्वारिका में श्रीकृष्ण और बलराम आपस में मंत्रणा करते हैं। बलराम कहते हैं कि हमारे शत्रु तो अभी तक ये सोचकर प्रसन्न थे कि गोमान्तक पर्वत के अग्निकाण्ड में हम दोनों जलकर भस्म हो गये हैं। अब उन्हें हमारे जीवित होने का पता चला होगा, तो कैसी प्रतिक्रिया हुई होगी। इस पर श्रीकृष्ण भविष्य में होने वाली एक घटना पर चिन्ता व्यक्त करते हुए कहते हैं कि आप अभी तक गोमान्तक पर्वत की अग्निकाण्ड के बारे में सोच रहे हैं, जबकि मैं भविष्य में होने वाले दूसरे अग्निकाण्ड को लेकर विचार कर रहा हूँ। बलराम पूछते हैं कि क्या हमें एक और अग्निकाण्ड से गुजरना है। श्रीकृष्ण कहते हैं कि हमें नहीं, हमारे सखा अर्जुन को। वह शीघ्र ही अपने भ्राताओं के साथ एक भीषण अग्निकाण्ड से गुजरने वाला है। बलराम तुरन्त उसकी सहायता के लिये जाने को तत्पर होते हैं। श्रीकृष्ण उन्हें रोकते हुए कहते हैं कि अभी धरती पर हमारे और उसके मिलन का समय नहीं आया है। वह यह भी कहते हैं कि इस अग्निकाण्ड में अभी समय है और तब भी उन्हें बचाने के लिये हमें जाने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी। बलराम इस बात पर नाराजगी व्यक्त करते हैं कि इस अवतार में श्रीकृष्ण छोटे भाई हैं फिर भी उन्हें हर बात खुलकर नहीं बताते हैं। उधर हस्तिनापुर में भीष्म धृतराष्ट्र से कहते हैं कि गुरुकुल से राजकुमारों के वापस आते ही युवराज की घोषणा कर दी जाये। इसके लिये धृतराष्ट्र राजसभा आहूत करते हैं। सबसे पहले शकुनि कहता है कि युधिष्ठिर और दुर्योधन के सभी गुण समान हैं। अन्तर है तो केवल इतना कि एक वर्तमान राजा का पुत्र है तो दूसरा निवर्तमान राजा की सन्तान। इसके बाद शकुनि का संकेत पाकर कुछ सभासद खड़े होकर दुर्योधन को युवराज बनाने की माँग उठाते हैं। इस पर धृतराष्ट्र कहता है कि मैं अपने पूर्वजों की रीति का पालन करते हुए युवराज की घोषणा राजसभा के मत से नहीं, जनमत से करूँगा और हमारे गुप्तचरों की सूचनानुसार हस्तिनापुर की जनता का मत युधिष्ठिर के पक्ष में है। यह कहते हुए धृतराष्ट्र पाण्डुपुत्र युधिष्ठिर को युवराज घोषित करता है। कुन्ती इस समाचार पर प्रसन्न होती हैं और भगवान श्रीकृष्ण का आभार व्यक्त करते हुए कहती हैं कि यह घोषणा प्रजा के दबाव में नहीं हुई है बल्कि श्रीकृष्ण की इच्छा पर हुई है क्योंकि वे ही पत्थर से अमृत निकाल सकते हैं। कुन्ती की प्रार्थना श्रीकृष्ण के मानस में पहुँचती है तभी नारद मुनि भी उनके समक्ष पहुँचते हैं और कहते हैं कि तीनों लोकों में आपकी नगरी की चर्चा हो रही है। श्रीकृष्ण बताते हैं कि यह नगरी चर्चा के योग्य है तभी मैंने इसे चार धामों में से एक धाम और सात मोक्षदायिनी पुरियों में से एक पुरी का दर्जा दिया है। इसके बाद श्रीकृष्ण नारद मुनि से आने का प्रयोजन पूछते हैं। नारद कहते हैं कि इस संसार में हर प्राणी को अपनी वंशवृद्धि की कामना रहती है। अतएव आपको विवाह कर लेना चाहिये। श्रीकृष्ण कहते हैं कि दाऊ भैया मुझसे बड़े हैं। मैं उनसे पहले कैसे विवाह कर सकता हूँ। तब नारद हँसते हुए कहते हैं कि बलराम जी के विवाह का प्रबन्ध तो स्वयं ब्रह्मा जी ने कर दिया है। आपकी होने वाली भाभी पृथ्वी लोक की ओर आ रही हैं। उनके स्वागत की तैयारी कीजिये। नारद बताते हैं कि जब मैं ब्रह्मलोक गया था तो मैंने देखा था कि महाराज रेवतक के पुत्र राजा कुकूदनी योगबल से अपनी पुत्री रेवती के साथ ब्रह्मलोक आये हुए थे। रेवती वह सामान्य कद के पुरुषों से बहुत लंबी थी, राजा उसके विवाह योग्य वर खोजकर थक गये थे और योगबल से पुत्री को लेकर ब्रह्मलोक गए थे। वहाँ ब्रह्मा जी ने उन्हें बताया कि धरती पर भगवान विष्णु ने श्रीकृष्ण और भगवान शेषनाग ने बलराम के रूप में अवतार लिया है। तुम अपनी पुत्री का विवाह बलराम से कर दो। राजा कुकूतनी द्वारिका पहुँच कर श्रीकृष्ण व बलराम के समक्ष उपस्थित होते हैं और अपनी पुत्री रेवती का कन्यादान करते हैं। रेवती भाभी का ऊँचा कद देखकर श्रीकृष्ण बलराम से चुहल करते हुए कहते हैं कि इनके लिये तो ऊँचा महल बनाना पड़ेगा। बलराम इसकी आवश्यकता से इनकार करते हैं और अपने हल के स्पर्श से रेवती का कद द्वापर युग के प्राणियों की भाँति सामान्य बना देते हैं। बलराम और रेवती के विवाह पर द्वारिका में मंगल गीतों के साथ उत्सव मनाया जाता है।
श्रीकृष्णा, रामानंद सागर द्वारा निर्देशित एक भारतीय टेलीविजन धारावाहिक है। मूल रूप से इस श्रृंखला का दूरदर्शन पर साप्ताहिक प्रसारण किया जाता था। यह धारावाहिक कृष्ण के जीवन से सम्बंधित कहानियों पर आधारित है। गर्ग संहिता , पद्म पुराण , ब्रह्मवैवर्त पुराण अग्नि पुराण, हरिवंश पुराण , महाभारत , भागवत पुराण , भगवद्गीता आदि पर बना धारावाहिक है सीरियल की पटकथा, स्क्रिप्ट एवं काव्य में बड़ौदा के महाराजा सयाजीराव विश्वविद्यालय के हिन्दी विभाग के अध्यक्ष डॉ विष्णु विराट जी ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। इसे सर्वप्रथम दूरदर्शन के मेट्रो चैनल पर प्रसारित 1993 को किया गया था जो 1996 तक चला, 221 एपिसोड का यह धारावाहिक बाद में दूरदर्शन के डीडी नेशनल पर टेलीकास्ट हुआ, रामायण व महाभारत के बाद इसने टी आर पी के मामले में इसने दोनों धारावाहिकों को पीछे छोड़ दिया था,इसका पुनः जनता की मांग पर प्रसारण कोरोना महामारी 2020 में लॉकडाउन के दौरान रामायण श्रृंखला समाप्त होने के बाद ०३ मई से डीडी नेशनल पर किया जा रहा है, TRP के मामले में २१ वें हफ्ते तक यह सीरियल नम्बर १ पर कायम रहा।
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