Uttrakhand Ka Famous Mela ' हिमालय का कुम्भ ' || Nanda Devi 2025
Автор: Uttrakhandi Trekar
Загружено: 2025-09-03
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नंदा देवी की कथा और अल्मोड़ा नंदा देवी मंदिर का इतिहास | देवभूमि दर्शनउत्तराखंड की आराध्य देवी माँ नन्दा की कहानी एक चंद्रवंशी राजा की भक्ति से जुड़ी है, जिसके बाद माँ पार्वती ने पुत्री रूप में जन्म लिया। नंदा को पार्वती का ही एक रूप माना जाता है और यह कहानी कुमाऊं की जुड़वां देवियों नंदा और सुनंदा पर आधारित है, जिनका विवाह गढ़वाल में हुआ था और वे अपने मायके कुमाऊं आती थीं। इसी मान्यता के चलते नंदा देवी मेले का आयोजन किया जाता है, जो उत्तराखंड की सांस्कृतिक पहचान का अभिन्न अंग है।
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माँ नंदा का जन्म और कहानी
चंद्रवंशी राजा की भक्ति:
एक चंद्रवंशी राजा संतानहीन होने के कारण उदास था। उसकी भक्ति से प्रसन्न होकर माँ पार्वती ने उसे पुत्री रूप में जन्म लेने का वचन दिया।
नंदा का जन्म:
माँ पार्वती ने अपने वचन अनुसार भाद्रपद मास की शुक्लपक्ष की अष्टमी को राजा के घर पुत्री रूप में जन्म लिया। राजा ने अपनी पुत्री का नाम नंदाकोट शिखर के नाम पर नंदा रखा।
नंदा देवी मेला:
इस दिन को चंद्रवंशियों ने हर्षोल्लास से मनाया, और तभी से प्रतिवर्ष नंदाष्टमी के दिन नंदा देवी मेला या उत्सव मनाया जाने लगा, जो कालांतर में अल्मोड़ा और नैनीताल का एक प्रमुख पर्व बन गया.
नंदा-सुनंदा की लोककथा
कुमाऊं की जुड़वां देवियाँ:
उत्तराखंड की एक लोकप्रिय लोककथा के अनुसार, कुमाऊं की नंदा और सुनंदा जुड़वां बहनें थीं, जो देवी दुर्गा का अवतार मानी जाती हैं.
राक्षस से बचाव:
यह कथा बताती है कि एक बार वे अपने मायके जा रही थीं, जब उन्हें एक राक्षस ने पीछा किया। राक्षस से बचने के लिए वे केले के पेड़ के पीछे छिप गईं, लेकिन एक बकरी ने पेड़ खा लिया, और वे राक्षस के सामने आ गईं और मारी गईं.
नंदा का ससुराल जाना:
एक अन्य मान्यता के अनुसार, नंदा जब 12 वर्षों तक ससुराल नहीं जा सकीं, तो बाद में उन्हें ससुराल भेजा गया। उन्हें ससुराल भेजने की यह यात्रा ही राजजात यात्रा कहलाती है.
नंदा और उत्तराखंड का सांस्कृतिक महत्व
कुलदेवी:
माँ नंदा को कुमाऊं और गढ़वाल दोनों क्षेत्रों का आराध्य और कुलदेवी माना जाता है.
त्योहारों का आयोजन:
नंदा के प्रति आस्था स्वरूप, कुमाऊं में हर साल नंदा-सुनंदा मेला और अल्मोड़ा में नंदा देवी मेला आयोजित होता है, जो उत्तराखंड की सांस्कृतिक पहचान को दर्शाता है.
राजजात यात्रा:
हर साल भाद्रपद शुक्ल एकादशी को नंदा देवी की राजजात का आरंभ होता है, जो 12 वर्षों में एक बार हिमालय की ओर कैलाश पर्वत तक होती है.
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