भारत के जननायक: भगत सिंह (Legendary Bhagat Singh)
Автор: Dhyeya TV
Загружено: 2019-01-04
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यूं तो इस वतन की आज़ादी के लिए 1857 से लेकर1947 तक हज़ारों लोगों ने अपनी जानें क़ुरबान कर दीं लेकिन सरदार भगत सिंह को शहीद-ए-आज़म के नाम से जाना जाता है आखिर क्यूँ?क्यूंकि उन्होंने महज़ 23 बरस की उम्र में फाँसी के फंदे को चूमकर जामे शहादत पी लिया।ऐसा नहीं था के सरदार भगत सिंह को अपनी जान प्यारी नहीं थी, ऐसा भी नहीं था के वो शोहरत हासिल करने के लिए सूली पर लटक गए थे। उनके पास जान बचाने का रास्ता भी था लेकिन उन्होंने जानबूझ कर ये क़दम उठाया। इस बारे में जस्टिस राजिंदर सच्चर ने अपने पिता स्व. भीमसेन सच्चर का एक क़िस्सा सुनाया जो भगत सिंह के साथ लाहौर जेल में बंद थे और बाद मैं पंजाब के मुख्य्मंत्री बने।एकबार भीमसेन सच्चर ने जेल में भगत सिंह से पूँछा की वो आखिर क्यूँ जान देना चाहते हैं? क्यूंकि अगर वो चाहें तो उन्हें माफ़ी मिल सकती है! इसपर सरदार का जवाब था "लालाजी,आज़ादी के परवाने जब तक शमा पर क़ुरबान नहीं होते तब तक वो शमा भड़केगी नहीं, तेज़ नहीं हो सकती इसलिए किसी न किसी को तो अपनी जान देनी ही पड़ेगी तभी तो आज़ादी मिलेगी।अगर हर आदमी यही सोच ले तो फिर क़ुरबानी कौन देगा?मुल्क़ की आज़ादी की तमन्ना के लिए इससे पाक और मुक़द्दस जज़्बा और क्या हो सकता है। लेकिन आज़ाद हिंदुस्तान की हुकूमत का तग़ाफ़ुल देखिये के आजतक सरदार भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव को शहीद का दर्जा नहीं दिया गया है। उन्हें शहीद घोषित करने की मांग हर साल उनकी सालगिरह और बरसी पर उठती है. केंद्रीय सूचना आयोग (सीआईसी) ने गृह मंत्रालय से कहा है कि भगत सिंह और उनके साथियों को शहीद का दर्जा देने के बारे में स्थिति स्पष्ट की जानी चाहिए।अगर ऐसा नहीं किया जा सकता तो सरकार इसका ब्यौरा दे.आज बात भगत सिंह की शख्सियत की।
Anchor : क़ुरबान अली
Guests: प्रो. सय्यद इरफ़ान हबीब,भगत सिंह और राष्ट्रिय आंदोलन पर कई किताबों के लेखक
वागीश झा,इतिहास के जानकर और लेखक
Report : Ashutosh Mishra, Keshari Pandey
Graphics: Imran Khan, Anurag Pandey
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